भारतीय परंपरा में वसंत पंचमी को बेहद अहम माना जाता है। प्राचीन संस्कृति के अनुसार इस दिन से ही गुरुकुल में बच्चों का शिक्षारंभ कराया जाता था। वसंत पंचमी को ज्ञान की देवी मां सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। इसे कई बसंत पंचमी (Basant Panchami Puja Vidhi) के नाम से भी जानते हैं। हिंदू धर्म में मां सरस्वती को हिंदू धर्म में संगीत और ज्ञान की देवी माना जात है। संगीत और कला की देवी मां सरस्वती का अवतरण सृष्टि के सृजनकर्ता ब्रह्मा जी ने माघ की पंचमी के दिन किया था। इसलिए बुद्धि, ज्ञान, कला और संगीत की देवी मां सरस्वती की पूजा-अर्चना बड़ी धूमधाम से इस दिन की जाती है। आइयें इस अंक में वसंत पंचमी पूजा विधि (Vasant Panchami Puja Vidhi) और वसंत पंचमी का महत्व जानें।
2021 में वसंत पंचमी का त्यौहार 16, फ़रवरी के दिन है। इस दिन आप 06 बजकर 59 मिनट से दोपहर 12 बजकर 34 मिनट तक मां सरस्वती की पूजा कर सकते हैं।
मां सरस्वती को ज्ञान की देवी माना जाता है। इसलिए इस दिन लोग नई पुस्तक और कलम की भी पूजा करते हैं। किसान अपनी नई गेहूं की फसल की पूजा करते हैं। आइए जानते हैं सरस्वती पूजन विधि (Saraswati Pooja Vidhi)।
इसे भी पढ़ेंः भगवान श्री कृष्ण के 25 नाम व उनके अर्थ
#1. देवीभागवत के अनुसार देवी सरस्वती की पूजा सबसे पहले भगवान श्री कृष्ण ने की थी। मान्यतानुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि वसंत पंचमी (Vasant Panchami) मनानी चाहिए।
#2. सर्वप्रथम स्नानादि इसके बाद पूजा के लिए जिस जगह चौकी लगानी हो वहां पर कपड़े से पोछा लगाकर साफ करें और उस जगह को शुद्ध करें। फिर वहां चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाकर मां सरस्वती की मूर्ति रखें और अक्षत चावल से कमल बनाएं।
#3. मां सरस्वती के पास गणेश जी की भी मूर्ति रखें क्योंकि यह दोनों ही ज्ञान और बुद्धि के देवता माने जाते हैं। गणेश जी को हर पूजा में सर्वप्रथम पूजा जाता है।
#4. इसके बाद एक जगह मां सरस्वती की मूर्ति रखें। मूर्ति के पास सफेद या पीले रंग के फूल और वस्त्र भी रखें। पीला और श्वेत यानि सफेद रंग मां सरस्वती को सर्वाधिक प्रिय होता है।
#5. इसके पश्चात सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा करें। फिर ज्ञान की देवी मां सरस्वती जी की वंदना करें।
#6. नई पुस्तकें और कलम पर रोली व मोली से पूजा कर कलम से पुस्तक पर श्री गणेशाय नमः व ओम श्री सरस्वती देवी नमः जो सरस्वती मंत्र (Saraswati Mantra) है लिखे। अब रोली से स्वास्तिक बनाएं और चावल चढ़ाएं।
#7. पंचमी के दिन मां सरस्वती को भोग लगाने के लिए आप खीर का हलवा बना सकते हैं परंतु इस दिन पीले रंग के मीठे चावल बनाना आवश्यक होता है। किसान लोग इस दिन में गुड और घी मिलाकर मां सरस्वती को भोग लगाते हैं।
#8. इस दिन मां सरस्वती का व्रत भी आप रख सकते हैं। अगर आप व्रत करते हैं तो शाम को ही अपना व्रत खोलें।
#9. वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा का विशेष विधान है। इसके लिए आप कलश की स्थापना करने के बाद गणेश, सूर्य, विष्णु तथा महादेव की पूजा करने के बाद वीणा वादिनी मां सरस्वती की पूजा अवश्य करें।
इसे भी पढ़ेंः पांच प्रभावी गर्भनिरोधक उपाय
बसंत पंचमी हरियाली का प्रतीक है जिसमें खिले-खिले फूल और लहराते सरसों के खेत, जों व गेहूं की बालियां वसंत ऋतु को दर्शाती है। फूलों पर मंडराती रंग बिरंगी तितलियां पूरे वातावरण को खुशनुमा और आनंदमई कर देती हैं। यह सब बातें दर्शाती है कि भारत में वसंत ऋतु ने दस्तक दे दी है। यह त्यौहार भारत और नेपाल में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।
इसे भारत में विभिन्न जगहों पर अलग-अलग तरीके से मनाते हैं। इस दिन लोग पीले वस्त्र पहनते है तो कोई पतंग उड़ा कर अपने उत्साह को दर्शाता है तो कोई इस दिन फसलों की पूजा करता है। इसका भारतीय परंपरा में क्या महत्व (Basant Panchami ka Mahatva) है और बसंत पंचमी का क्या इतिहास है इस बारे में हम आपको आज बताते हैं।
यह एक आम बात है कि जो देवी-देवता जिस क्षेत्र में शक्तिशाली है उस देवी देवता की उस दिन पूजा-अर्चना करने से सुख व शांति प्राप्त होती हैं। इसके साथ ही वे हम पर अपनी कृपा बरसाते हैं। इसलिए इस दिन मां सरस्वती की पूजा करने से मनुष्य में ज्ञान का संचार व वाणी में मधुरता आती है। माना जाता है कि इस दिन कई शुभ काम जैसे नया मकान खरीदना, नवजात बच्चों को पहला निवाला खिलाना इत्यादि शुभ माना जाता है।
माघ शुक्ल की पंचमी तिथि को विद्या की देवी मां सरस्वती की उपासना की जाती है। मान्यता है कि इस दिन विद्या की देवी मां सरस्वती का विश्व के रचयिता ब्रह्मा जी द्वारा प्राकट्य हुआ था। इस कथा को आधार मानते हुए यह दिन मां सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। कहते हैं मां सरस्वती को पीला रंग बहुत प्रिय होता है। इसलिए इस दिन लोग पीले वस्त्र पहनकर और पीले व्यंजन का भोग लगाकर मां सरस्वती को खुश करते हैं। भारतीय परंपरा के अनुसार मां सरस्वती को ब्रह्मविद्या, संगीत, कला और ज्ञान की देवी माना जाता है।
भारतीय संस्कृति में वसंत पंचमी को स्वयं सिद्ध मुहूर्त (Siddh Muhurat) कहा गया है। माना गया है कि वसंत पंचमी के दिन किसी भी शुभ मुहूर्त के लिए तिथि, समय, वार, नक्षत्र इत्यादि देखने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। हमारे सनातन धर्म के मुताबिक वसंत को ऋतु का राजा कहा जाता है।
इसे भी पढ़ेंः नामकरण संस्कार: जानिए इसका महत्त्व
पुराणों में लेख किया जाता है कि विश्वकर्ता ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु की आज्ञा से सृष्टि रचना के साथ ही मनुष्य योनि की रचना की है परंतु मनुष्य की रचना के बाद चारों ओर मून दिखाई पड़ा जिसे देखकर ब्रह्माजी उदास हो गए। फिर ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल लेकर छिड़काव किया जो धरती पर गिरते ही एक कंपन हुई और वृक्षों के मध्य में एक अद्भुत शक्ति प्रकट हुई जो दोनों हाथों से वीणा बजा रही थी और एक हाथ में पुस्तक को और दूसरे हाथ में माला लिए जीवो को विद्या का दान दे रही थी। इसलिए ब्रह्मा जी ने इस देवी को मां सरस्वती (Devi Saraswati) का नाम दिया। इसलिए वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है।
वसंत पंचमी के दिन मंदिरों में भगवान की प्रतिमा पर वसंती वस्त्रों व पुष्पा का श्रंगार होता है। गाने बजाने व पूरे हर्षोल्लास के साथ यह त्यौहार मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण को इस उत्सव के अधिदेव कहा जाता है। इसलिए पूरे प्रदेश में राधा कृष्ण की यात्रा पूरे आनंद के साथ निकाली जाती है। वृंदावन, बरसाना में होली के रंग गुलाल शुरू हो जाते हैं। पंचमी के अवसर पर सभी मंदिरों में ठाकुर जी के विशेष श्रंगार, उत्सव और अनोखे दर्शनों का आयोजन किया जाता है। वृंदावन में विश्व प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर में ठाकुरजी के चरण दर्शन करने का शुभ अवसर प्राप्त होता है। यह अवसर पूरे साल भर में सिर्फ वसंत पंचमी के दिन ही संभव होता है।
वसंत पंचमी त्रेता युग की देन है। श्री राम सीता हरण के बाद जब रावण की खोज में दक्षिण में गए थे तब दंडकारण्य वन वर्तमान में गुजरात मध्यप्रदेश में है माना जाता है, उस दिन भगवान श्री राम जी शबरी की कुटिया में गए थे। वह दिन वसंत पंचमी का ही दिन था जिस दिन शीला पर श्री राम बैठे थे। उनकी पूजा आज के दिन ही होती है। इसलिए मां सरस्वती की पूजा रोली, पीले फूल, गुलाल, पीले रंग की मिठाई एवं आम की मंजरी से करनी चाहिए।
परंपरा के अनुसार छात्र-छात्राओं को मां सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए अपनी पाठ्य पुस्तकों को मां सरस्वती की प्रतिमा के आगे रख देना चाहिए। उस दिन विधि विधान से पूजा अर्चना करके मां सरस्वती के आगे राखी पुस्तकों को नमन करना चाहिए। इस दिन मां सरस्वती की पूजा (Saraswati Puja) अर्चना करके उनके नाम का 108 बार जाप करके आशीर्वाद लेना चाहिए।
इसे भी पढ़ेंः बच्चे का बिस्तर पर पिशाब करने के 10 कारण
क्या आप एक माँ के रूप में अन्य माताओं से शब्दों या तस्वीरों के माध्यम से अपने अनुभव बांटना चाहती हैं? अगर हाँ, तो माताओं के संयुक्त संगठन का हिस्सा बने। यहाँ क्लिक करें और हम आपसे संपर्क करेंगे।
null
null