प्रेगनेंसी के दौरान अल्ट्रासाउंड के बारें में पूरी जानकारी

प्रेगनेंसी के दौरान अल्ट्रासाउंड के बारें में पूरी जानकारी

प्रेगनेंसी में कदम रखते ही होने वाली माँ को घर के बड़े-बुजुर्ग या डॉक्टर की तरफ से कई सलाह मिलनी शुरू हो जाती है। यह सलाह खान-पान, पहनावे, काम, दवाओं आदि से जुड़ी होती है। डॉक्टर गर्भावस्था में जिस चीज़ की सबसे पहले सलाह देते हैं, वो है अल्ट्रासाउंड। अल्ट्रासाउंड को हिंदी में सोनोग्राफी कहते हैं। प्रेगनेंसी में अल्ट्रासाउंड (Pregnancy mein Ultrasound) कराना बेहद आवश्यक है क्योंकि इससे भ्रूण के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां मिलती हैं जैसे भ्रूण की संख्या, उसकी दिल की धड़कन, भ्रूण की स्थिति, उसकी लम्बाई या विकास। ऐसे में यह जानना बेहद रोचक है कि प्रेगनेंसी के दौरान अल्ट्रासाउंड (Ultrasound During Pregnancy) क्यों और कितना जरूरी है।

कैसे होता है अल्ट्रासाउंड स्कैन? (Ultrasound Procedure in Hindi)

प्रेगनेंसी के दूसरे या तीसरे महीने में पहला अल्ट्रासाउंड कराने की सलाह दी जाती है। अगर कोई समस्या हो तो इससे पहले भी अल्ट्रासाउंड कराया जा सकता है। इसे कराने से पहले महिला को पर्याप्त पानी पीने को कहा जाता है ताकि अल्ट्रासाउंड अच्छे से हो सके।
इसे करने से पहले महिला के पेट पर जैल लगाया जाता है और हाथ से आयोजित छोटे ट्रांसड्यूसर या प्रोब को पेट पर घुमाया जाता है ताकि शिशु को देखा जा सके। अल्ट्रासाउंड में ध्वनि तरंगों के द्वारा गर्भ में पल रहे शिशु की तस्वीर कंप्यूटर की स्क्रीन पर साफ दिखाई देती है। इससे शिशु की पहली तस्वीर माता-पिता आसानी से देख सकते हैं। योनि के माध्यम से भी अल्ट्रासाउंड कराया जाता है। इससे गर्भ में पल रहे भ्रूण की तस्वीर और भी साफ दिखाई देती है।

इसे भी पढ़ेंः गर्भावस्था के दौरान ध्यान देने के योग्य बातें

क्या प्रेगनेंसी में अल्ट्रासाउंड होते हैं सुरक्षित? (Are Ultrasound Scans are Safe during Pregnancy in Hindi)

मेरी बहन जब सात महीने की गर्भवती थी तब हमें अल्ट्रासाउंड के द्वारा पता चला कि बच्चे का वजन काफी कम है। इसके अलावा भी मेरी बहन को कुछ दिक्कते थीं। प्रसव तक उसका कई बार अल्ट्रासाउंड हुआ। इसके कारण हमारे रिश्तेदार मानने लगे थे कि मेरी बहन का होने वाला बच्चा स्वस्थ नहीं होगा। कई बार तो हम भी सोचने लगे थे कि अल्ट्रासाउंड से कहीं बच्चे को दिक्कत ना हो जाए। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, उलटा अल्ट्रासाउंड स्कैन के द्वारा मिली जानकारी से डॉक्टरों ने होने वाले बच्चे के वजन को आखिरी माह में बढ़ाने में काफी मदद की।

वैज्ञानिक सर्वे के अनुसार अल्ट्रासाउंड टेस्ट (Ultrasound Scan) बच्चों में होने वाले दोष व मृत्यु दर को कम करने में काफी बड़ा योगदान देते हैं। इसकी मदद से आप आखिरी माह तक अपने बच्चे की कुशलता को सुनिश्चित कर पाती हैं। इससे डरे नहीं।

गर्भावस्था में अल्ट्रासाउंड कब कराएं (Pregnancy Ultrasound Test Schedule in Hindi)

भारत में डॉक्टर प्रेगनेंसी के दौरान करीब पांच से छह बार अल्ट्रासाउंड कराने की सलाह देते हैं। पहली सोनोग्राफी या अल्ट्रासाउंड पहली तिमाही या छठें सप्ताह में होती है और आखिरी तीसरे ट्राइमेस्टर (Third Trimester Ultrasound Scan) में।  

  • छह और नौ सप्ताह के बीच डेटिंड व वायबिलिटी स्कैन (Vitality Scan)
  • 11 और 13 सप्ताह के बीच न्यूकल ट्रांसलुसेंसी स्कैन या लेवल 1 (Nuchal translucency Scan N.T.)
  • 18 और 20 सप्ताह के बीच एनॉमली स्कैन या लेवल 2 (Anomaly scan)
  • 28 और 32 सप्ताह के बीच स्कैन
  • 36 और 40 सप्ताह के बीच ग्रोथ स्कैन और कलर डॉप्लर स्कैन (Color Dopler Scan)

इसे भी पढ़ेंः एपिड्यूरल इंजेक्शन क्या होता है

सरल शब्दों में आप तिमाही या ट्राइमेस्टर के अनुसार प्रेगनेंसी में होने वाले अल्ट्रासाउंड के बारे में ऐसे समझ सकते हैंः

  1. पहले ट्राइमेस्टर में अल्ट्रासाउंड (First Trimester Ultrasound): पहली तिमाही में होने वाले सोनोग्राफी टेस्ट में बच्चे की धड़कने व विकास की गति का पता चलता है। लेवल वन अल्ट्रासाउंड पहली तिमाही में हो जाता है।  
  2. दूसरे ट्राइमेस्टर में अल्ट्रासाउंड (Second Trimester Ultrasound Scan): दूसरी तिमाही में बच्चे के शरीर के अंगों का पता चलता है। इस दौरान यह जांचा जाता है कि बच्चे के शरीर की बनावट सही है या नहीं। इस समय के टेस्ट बेहद अहम होते हैं।
  3. तीसरे ट्राइमेस्टर के अल्ट्रासाउंड (Third Trimester Ultrasound Test): तीसरी तिमाही में होने वाले टेस्ट के द्वारा बच्चे के शारीरिक विकास, वजन, उसकी स्थिति आदि का पता लगाया जाता है।

 

इसके अलावा इन स्थितियों में इससे अधिक बार अल्ट्रासाउंड कराने की सलाह दी जाती हैः

  • अगर गर्भवती महिला की उम्र अधिक हो और गर्भ में एक से अधिक शिशु हों।
  • शिशु का आकार सामान्य से अधिक हो या उसका विकास सही से न हो रहा हो।
  • अगर प्रेगनेंसी में गर्भनाल सम्बन्धी कोई समस्या हो।
  • शिशु की स्थिति सामान्य न हो।
  • गर्भवती महिला को उच्च रक्तचाप, मधुमेह या ऐसी ही कोई समस्या हो जो शिशु को प्रभावित कर सकती हो।

 

प्रेगनेंसी में अल्ट्रासाउंड के लिए कुछ सावधानियां (Precautions for Ultrasound Scan during Pregnancy in Hindi)

  • प्रेगनेंसी के दौरान अल्ट्रासाउंड कराने के लिए कई बार खाली पेट जाना होता है, इसके बारें में डॉक्टर से पहले ही पूछ लें।
  • भारत में अल्ट्रासाउंड के द्वारा लिंग परिक्षण कानूनी जुर्म है।
  • अल्ट्रासाउंड टेस्ट कराने के लिए गर्भवती स्त्री व उसके पति का आधार व अन्य पहचान पत्र होना आवश्यक है।
  • प्रेगनेंसी के दौरान अल्ट्रासाउंड जरूर कराएं, इससे बच्चे में अगर कोई दोष होता है तो पता चल जाता है।
  • सरकारी अस्पतालों में अल्ट्रासाउंड बेहद कीफयती दरों पर होते हैं। अगर कीमत की बात करें तो यह हर अस्पताल के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं।
  • अल्ट्रासाउंड कराने के लिए हमेशा ढ़ीले कपड़े पहनकर जाएं जिससे आपको क्लिनिक में दिक्कत ना हो।
  • अल्ट्रासाउंड के समय कुछ अस्पताल परिवार के सदस्यों और पति को जाने की अनुमति देते हैं, इसके बारें में डॉक्टर से पहले पूछ लें।

 

प्रेगनेंसी के दौरान अल्ट्रासाउंड स्कैन के फायदे (Benefits of Ultrasound Scans During Pregnancy in Hindi)

#1. भ्रूण का विकास (Development of fetus)
प्रेगनेंसी के शुरुआत के पहले कुछ महीने बेहद महत्वपूर्ण होते हैं और उस समय गर्भ में शिशु का विकास सही से हो रहा है या नहीं इसका पता करना बहुत जरूरी है क्योंकि इस समय शरीर कई हार्मोन सम्बन्धी बदलावों से गुजरता है। यही नहीं इन्हीं महीनों में गर्भपात की आशंका सबसे ज्यादा होती है। अगर भ्रूण का विकास न हो पा रहा हो तो डॉक्टर उसके अनुसार उपचार करते हैं।

#2. संख्या (Number of fetus)
गर्भ में कितने शिशु हैं इस बात का पता भी अल्ट्रासाउंड की मदद से लगाया जा सकता है। कई बार गर्भ में एक से अधिक शिशु होते हैं ऐसे में अगर उनका पहले ही पता चल जाए तो उसके अनुसार सावधानियां बरती जा सकती है।

#3. शिशु की धड़कन (Baby’s Heartbeat)
शिशु के विकास के साथ-साथ शिशु के दिल की धड़कन सही से चल रही है या नहीं, इस बात का पता लगाने के लिए भी अल्ट्रासाउंड कराना जरूरी है। यही नहीं शिशु कितने दिन या महीने का है, अल्ट्रासाउंड से इस चीज़ का भी आसानी से पता चल सकता है। भ्रूण का वजन और लम्बाई भी अल्ट्रासाउंड से जानी जा सकती है।

#4. असामान्यता (Abnormality)
शिशु सामान्य है या असामान्य इस बात का भी अल्ट्रासाउंड के माध्यम से पता चल जाता है। अगर शिशु को कोई दोष हो तो उसके बारे में भी जानकारी मिल जाती है। कई बार शिशु गर्भ में ही किसी समस्या का शिकार हो जाते हैं। अल्ट्रासाउंड के माध्यम से शिशु के बारे में पूरी जानकारी मिलने के बाद डॉक्टर कोई सलाह देते हैं।

#5. स्थिति (Position)
गर्भ में शिशु की स्थिति कैसी है इस चीज़ को जानने में भी अल्ट्रासाउंड उपयोगी है। गर्भावस्था की शुरुआत से लेकर प्रसव तक बच्चे की स्थिति के लिए अल्ट्रासाउंड का प्रयोग किया जाता है। शिशु की पोजीशन अगर सही न हो तो डॉक्टर उसी के अनुसार उपचार करते हैं और प्रसव सामान्य होगा या सिजेरियन इस बात का अंदाज़ा भी अल्ट्रासाउंड से लग जाता है।

#6. अन्य समस्याएं (Other Problems)
प्रेगनेंसी के दौरान अगर रक्तस्त्राव होता है या प्लेसेंटा यानी गर्भनाल की स्थिति आदि का पता लगाने के लिए भी अल्ट्रासाउंड सहायक है। प्रेगनेंसी में अल्ट्रासाउंड से इस बात का भी पता चल जाता है कि होने वाले शिशु लड़का है या लड़की लेकिन कानूनी रूप से इस बात का पता लगाना एक जुर्म है।

अल्ट्रासाउंड स्कैन को लेकर यह भी धारणाएं हैं कि अधिक बार अल्ट्रासाउंड करने के बाद शिशु मानसिक विकास सही तरीके से नहीं हो पाता। इसके साथ ही जिन बच्चों के गर्भ में होने पर गर्भवती स्त्री का बार-बार अल्ट्रासाउंड होता है, उन बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कमजोर होती है। इससे बच्चे का वजन कम होता है और उसे कोई गंभीर बीमारी हो सकती है। इन सबके बारे में कई शोध किये गए हैं लेकिन अल्ट्रासाउंड से होने वाले साइड इफेक्ट्स (Side Effects of Ultrasound During Pregnancy) पूरी तरह से प्रमाणित नहीं हो पाए है। ऐसे में अल्ट्रासाउंड के बारे में यही कहा जा सकता है कि गर्भावस्था में इसे कराना बेहद आवश्यक है ताकि होने वाली बच्चे की पूरी देखभाल हो सके और गर्भवती स्त्री भी पूरी तरह से स्वस्थ रहे।

इसे भी पढ़ेंः प्रेगनेंसी में स्तनों और पेट में खुजली के कारण

क्या आप एक माँ के रूप में अन्य माताओं से शब्दों या तस्वीरों के माध्यम से अपने अनुभव बांटना चाहती हैं? अगर हाँ, तो माताओं के संयुक्त संगठन का हिस्सा बने। यहाँ क्लिक करें और हम आपसे संपर्क करेंगे।

null

null