बच्चे के जन्म से लेकर पहले तीन महीने काफी महत्वपूर्ण होते है। इस समय बच्चे की केयर करना बेहद आवश्यक है। तीन महीने का होने पर बच्चा पहले की तुलना में कम रोने लगता है। इस समय एक मां अपने बच्चे को समझना शुरु करती है। इसी समय बच्चा धीरे-धीरे एक निश्चित दिनचर्या में ढ़लना शुरू कर देता है और यह पल हर माँ के लिए बहुत यादगार पल होते हैं। इस उम्र में बच्चे अपने चारों तरफ मौजूद वस्तुओं और वातावरण का लुत्फ उठाना शुरू कर देते हैं।
3 महीने तक होते-होते बच्चे चेहरे से प्रतिक्रिया देना शुरू कर देते हैं। वह हंसने लगते है, आवाजों पर रिएक्ट करते हैं और उनके सोने-जागने का समय भी धीरे-धीरे निश्चित होने लगता है। 6 महीने के होने पर बच्चे पलटना सीख लेते हैं, इस समय मां-बाप को और अधिक सतर्क रहने की जरूरत होती है। आइयें जानें कुछ ऐसे आसान टिप्स जो छह महीने के बच्चों की देखभाल के लिए बेहद जरूरी होते हैंः
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जब आपका बच्चा 3 महीने का हो जाता है तो उसे रोजाना एक निश्चित समय पर सोने की आदत पड़ जाती है। 3 महीने का शिशु एक बार में 5 से 6 घंटे लगातार सो सकता है। इसलिए इस समय आप अपने बच्चे को सोने की आदत डालें। अगर आप बच्चों को रात के समय खुद सोने की आदत डाल देती है तो अगर वह रात को उठ भी जाता है तो आप उसे आसानी से सुला सकती हैं। सुलाते समय आप बेड के चारों तरफ कारपेट या चटाई भी बिछा दें क्योंकि तीन महीने का होने के बाद बच्चे पलटना भी शुरु हो जाते हैं।
नवजात बच्चे के सोने के घंटे:
0 से 3 माह तक- 18 से 20 घंटे
3 से 6 माह तक- 14 से 16 घंटे
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कम से कम बच्चों को 6 महीने तक माँ के दूध के अलावा कुछ भी खिलाना या पिलाना नहीं चाहिए। इसलिये अभी भी आपको अपने बच्चे का स्तनपान कराना जारी रखना चाहिए। स्तनपान कराने के बाद भी अगर आपका बच्चा किसी कारणवश भूखा रह जाता है तो आप बच्चे को फार्मूला दूध पिला सकती हैं। आप 3 महीने तक के बच्चे को तो पानी बिलकुल ना पिलाए क्योंकि मां का दूध बच्चे के शरीर में पानी की पूर्ति कर देता है। तीन महीने के बाद अगर मौसम थोडा गर्मी भरा है तो थोडी पानी पिला सकते हैं।
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6 महीने के होते-होते बच्चे काफी शरारती व नटखट होने लगते हैं। वह सर उठाना और पलटना भी सीख लेते हैं। इसके साथ ही वह बिस्तर पर इधर से उधर थोड़ा-थोड़ा घूमने लगते हैं। इस उम्र में बच्चे अपने हाथ पैर भी मारने लगते हैं और कोई भी चीज अगर उनके आसपास हो तो वे उसे उठाकर सीधा मुंह में डालने लगते हैं। इसलिए इस उम्र में एक मां की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है क्योंकि अगर कोई चीज नुकीली हो तो उसे लगने का डर रहता है। इस उम्र में आप बच्चे को अकेले बिस्तर छोड़ने की बजाय नीचे जमीन पर चादर बिछा कर जा सकती हैं और ये भी ध्यान रखे कि उसके आसपास ऐसी कोई चीज ना हो जिससे वह अपने आप को नुकसान पहुंचा सके।
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छह महीने का होने पर बच्चे आवाजों के प्रति प्रतिक्रिया करने लगते हैं। जब भी वे कोई आवाज सुनते हैं तो उस पर अपनी प्रतिक्रिया देने लगते हैं। जब आप अपने बच्चे से कुछ-कुछ बातें करती है तो वह भी हंसकर या खिलखिलाकर चेहरे की प्रतिक्रिया देते हैं। उसको आपकी बाते चाहे ना समझ आए परंतु वे आपकी बातें सुनकर बहुत खुश होते हैं। इसलिये आप उनके साथ चेहरे की विभिन्न प्रतिक्रियाये बनाकर व उनको छुकर उनसे अच्छा संबंध बना सकती हैं।
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बच्चे के जन्म के 10-15 दिन के बाद आप उसे दिन में 15 से 20 मिनट के लिए पेट के बल लिटाये ताकि वह शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत हो और उसके हाथ, पैर और सिर मजबूत बने। पेट के बल लिटाने के समय आप उसके साथ आंख से आंख मिलाओ, उसे गुदगुदाया, उसके साथ खेलो ताकि वह पेट के बल थोड़ी देर लेट सके।
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भारत में मालिश का चलन बहुत पुराना है लेकिन माता-पिता को अक्सर ये परेशानी रहती है कि मालिश बच्चों को कब और कैसे करनी चाहिए। शिशु की दूध पिलाने के बाद मालिश नहीं करनी चाहिए इससे वह उल्टी कर सकता है। बच्चे की बादाम तेल से हल्के हाथ से मालिश करें और मालिश करने के बाद आधा घंटा या 1 घंटा उसे हाथ पैर मारकर आराम से खेलने दे ताकि उसकी हड्डियां मजबूत बने और उसका अच्छे से विकास हो सके। हमेशा बच्चे को नहलाने से आधा घंटा पहले मालिश करना सबसे बेहतरीन तरीका है।
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मालिश करने के आधे या 1 घंटे बाद आप उसे नहला सकती हैं। लेकिन इससे पहले आप सारा सामान अपने साथ लेकर बैठे जैसे कि तोलिया, साबुन, एक साफ डायपर इत्यादि ताकि बच्चे को नहलाने वक्त परेशानी ना हो। अगर बीच में कोई सामान लाना ही पड़ जाए तो बच्चे को पानी में अकेला ना छोड़े बल्कि उसे तोलिये में लपेटकर अपने साथ ले जाए। बच्चो को ज्यादा ठंडे या गर्म पानी से ना नहलाये क्योंकि उनकी त्वचा बहुत कोमल होती हैं इसलिये सर्दी हो या गर्मी उनको हमेशा गुनगुने पानी से ही नहलाये। नहलाने के तुरंत बाद उसे तोलिये में लपेटकर अच्छे से पूछ ले व कपडे पहना दे क्योंकि ज्यादा देर तक गीला रहने पर उसे ठंड लग सकती हैं। कई बार तो शिशु नहलाने के तुरंत बाद सो जाता है।
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डायपर रैशेष से बचने के लिए बच्चे के मल-मूत्र करने के बाद जल्दी से उसका डायपर बदल दे। इसके अलावा साफ कपड़े को पानी में भिगोकर बच्चे की डायपर वाली जगह पर पूरी तरह से सफाई दे। हर रोज शिशु को कुछ घंटे बिना डायपर के खुला रखें ताकि बच्चों के नीचे वाले अंगों को हवा लगे और कोई रैशेष ना हो।
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आप बच्चों के आसपास साफ-सफाई का पूरा ख्याल रखें। जब भी आप बच्चों को उठाए तो हाथो को अच्छे से धो ले। घर में अगर कोई और छोटा भाई-बहन है तो उसका भी ध्यान रखें कि वह बच्चे को कोई नुकसान ना पहुंचाएं। इसके अलावा शिशु का तोलिया, डायपर, बिस्तर, खिलौने इत्यादि सब चीजें साफ रखें क्योंकि बच्चे बहुत जल्दी संक्रमित होते हैं और बीमार पड़ जाते हैं।
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अपने बच्चों का टीकाकरण का पूरा-पूरा ध्यान रखें कि किस-किस समय पर उसे कोन-कोनसे टीकाकरण की आवश्यकता है और वह टीका जरूर लगवाएं। इससे आपके बच्चे को कोई बीमारी भी नहीं होगी और उसमें रोगो से लड़ने की क्षमता भी विकसित होगी। इसके बारे में अपने डॉक्टर से जरूर सलाह लें।
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