प्रसव का समय नज़दीक होने के कारण गर्भावस्था का अंतिम और तीसरा चरण बेहद महत्वपूर्ण होता है। क्योंकि इस दौरान थोड़ी सी भी लापरवाही आपके और आपके शिशु के लिए हानिकारक हो सकती है। अंतिम तिमाही में गर्भवती स्त्री का पेट भी काफी बाहर आ जाता है। यही नहीं, गर्भ में शिशु का हिलना-डुलना भी अधिक हो जाता है। गर्भावस्था की तीसरी तिमाही (Third Trimester of Pregnancy) में शिशु का विकास लगभग पूरा हो चुका होता है। शिशु के सही विकास और आसान प्रसव के लिए आपको इस समय कई चीज़ों का खास ध्यान रखना पड़ता है। जानिये गर्भावस्था की तीसरी तिमाही के बारे में पूरी जानकारी ।
गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में होने वाली माँ न केवल शारीरिक बल्कि कई मानसिक परिवर्तनों से भी गुजरती है, जो इस प्रकार हैं:
गर्भावस्था की अंतिम तिमाही में प्रसव को केवल कुछ ही समय बचा होता है और गर्भाशय में शिशु का पूरी तरह से विकास हो चुका होता है। गर्भावस्था की अंतिम तिमाही में गर्भ में शिशु के साथ-साथ माँ का वजन भी बढ़ जाता है।
गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में पीठ और कमर में दर्द होना बेहद सामान्य है। ऐसा इस दौरान हार्मोन्स में हो रहे बदलाव और बढ़ रहे शिशु के वजन के कारण होता है।
गर्भावस्था की अंतिम तिमाही में होने वाली माँ के कूल्हों के साथ-साथ टांगों और योनि में दर्द होना भी आम है। इसका कारण गर्भाशय के आकार में हुआ बदलाव होता है। बढे हुए वजन का प्रभाव मांसपेशियों पर भी पड़ता है।
भार का बढ़ना, शिशु का गर्भ में हिलना-डुलना, पेट के बड़े होने और अन्य समस्याओं के कारण इस समय नींद न आना भी स्वभाविक है। प्रसव का भय और भविष्य की चिंता के कारण भी ऐसा हो सकता है।
गर्भावस्था की अंतिम तिमाही में गर्भवती महिला के पेट में स्ट्रेच मार्क्स के निशान गहरे हो जाते हैं। पेट के बढ़ते आकार के कारण ऐसा होता है।
अंतिम महीनों में आपके वजन में वृद्धि और पेट के बढ़ने आदि के कारण आपको चलने-फिरने में भी समस्या हो सकती है। थोड़ा काम करने या चलने फिरने से ही आप जल्दी थक जाएंगी।
अधिकतर महिलायें गर्भावस्था की तीसरी तिमाही (Third Trimster) में अपनी भूख में बदलाव भी महसूस करती है आमतौर पर इस दौरान महिला को सामान्य से अधिक भूख लगती है।
गर्भावस्था के अंतिम महीनों में स्तनों से पीले रंग का द्रव निकलना शुरू हो जाता है। यह गाढ़ा होता है और इसे कोलोस्ट्रम कहा जाता है। हालाँकि समय के साथ-साथ यह द्रव पानी की तरह हो जाता है।
गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिलाओं को कब्ज की समस्या रहती है लेकिन अंतिम महीनों में यह समस्या कभी-कभी बढ़ कर बवासीर का रूप ले सकती है। ऐसा न हो इसके लिए शुरू से ही फ़ाइबर युक्त आहार खाएं और पानी पीएं। अगर समस्या बढ़ गयी है तो डॉक्टर की सलाह लें।
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गर्भावस्था की अंतिम तिमाही में महिला के मन में उत्साह के साथ-साथ प्रसव और अन्य चीज़ों को लेकर भय और व्याकुलता बढ़ती जाती है। ऐसे में डर के साथ-साथ चिंता होना भी सामान्य है। इन चिंताओं के कारण महिलाएं तनाव और अवसाद का भी सामना कर सकती हैं। अंतिम महीने में दिमाग में नकारात्मक विचार आना भी स्वभाविक है लेकिन आप खुद को व्यस्त रख कर, व्यायाम और योग करके और अपने परिवार के साथ अच्छा समय बिता कर इस स्थिति से भी बाहर आ सकती हैं। अगर आप बेचैन महसूस कर रही हैं तो डॉक्टर से बात करना न भूले।
गर्भावस्था के अंतिम चरण में क्या खाना (What to eat during third trimester) है और क्या नहीं खाना है, इस बात को लेकर सतर्क रहें। जानिए इस दौरान क्या खाना चाहिए:
गर्भावस्था के अंतिम चरण में आपके शरीर में प्रोटीन की कमी नहीं होनी चाहिए। इसके लिए आप प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों जैसे कि साबुत अनाज, दालों, सब्जियों आदि का भरपूर सेवन करें।
गर्भावस्था में खून की कमी न हो इसके लिए हरी सब्ज़ियाँ जैसे पालक, मेथी आदि का सेवन करना न भूले क्योंकि अगर आपके शरीर में आयरन की कमी है तो आपको प्रसव में भी समस्या आ सकती है।
शिशु और अपनी हड्डियों की मज़बूती और विकास के लिए अपने आहार में कैल्शियम जरूर लें जैसे कि दूध और दूध से बनी चीजें (पनीर, दही, छाछ आदि)। इसके साथ ही हरी सब्ज़ियाँ और बादाम आदि भी कैल्शियम का अच्छा स्रोत है। कैल्शियम का शरीर में अच्छे से अवशोषण हो इसके लिए विटामिन सी का सेवन अवश्य करें। अपने आहार में साबुत अनाज जैसे मक्का, ओट्स, ब्राउन राइस, बाजरा आदि को भी शामिल करें।
गर्भ में पल रहे शिशु के दिमाग का विकास सही से हो और उसकी मांसपेशियों को भी पूरी ताकत मिले, इसके लिए अपने खाने में ओमेगा 3 को शामिल करें। इसके लिए अलसी के बीज, अखरोट, राई का तेल, सोयाबीन, चिकन और सैल्मन फिश आदि को खाएं।
विटामिन के रक्त को गाढ़ा करने और रक्तस्त्राव को रोकने के लिए मददगार है जिससे प्रसव में आपको मदद मिलेगी। हरी पत्तेदार सब्जियां, मूली, गेहूँ, केले, अंकुरित अनाज, हरा प्याज़ और फलों का सेवन करके आप विटामिन के प्राप्त कर सकती हैं।
माँ और शिशु दोनों को खून की कमी न हो और इसके साथ ही गर्भनाल भी ठीक रहे इसके लिए फोलिक एसिड युक्त आहार खाना जरूरी है। इसके साथ ही जिंक युक्त खाद्य पदार्थों को खाना भी न भूले। इनके लिए आप दालें, हरी सब्जियां, पुदीना, अंडे, दूध से बनी चीज़ों को अवश्य खाएं।
अपने खाने में कार्बोहाइड्रेट युक्त चीज़ों को शामिल अवश्य करें जैसे आलू, सूखे मेवे, दूध, अंडा, बीन्स आदि।
गर्भावस्था के अंतिम चरण में आपको कब्ज या बवासीर की समस्या बढ़ न जाए इसके लिए पहले से ही फाइबर युक्त आहार का सेवन करें। ओट्स, फल, हरी सब्ज़ियाँ और तरल पदार्थ से कब्ज की समस्या नहीं होती है।
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अंतिम चरण में आपको कैसे उठना, बैठना या लेटना है, इन सबका खास ध्यान रखना चाहिए। बैठते हुए एकदम सीधा होकर बैठे और किसी चीज़ का सहारा जरूर लें। सोते हुए बाईं ओर करवट लेकर सोना सही माना जाता है। एकदम झटके से खड़े न हों बल्कि धीरे-धीरे खड़े हों।
गर्भावस्था के अंतिम चरण में होने वाली कब्ज और बवासीर से बचने के लिए खूब पानी पीएं। यही नहीं, तरल आहार का सेवन भी इस दौरान अच्छा रहता है।
अंतिम चरण में गर्भवती महिला को साँस लेने में समस्या होती है ऐसे में व्यायाम करें खासतौर पर सांस सम्बन्धित व्यायाम। योग करना भी अंतिम चरण में आपके और शिशु के लिए लाभदायक होगा बस विशेषज्ञ की राय के बाद ही योग के आसन करें।
गर्भावस्था के अंतिम महीनों में प्रसव के भय और अन्य कारणों के कारण आप तनाव महसूस कर सकती हैं। अगर आप कुछ ऐसा महसूस कर रही हों तो डॉक्टर से बात करें और व्यस्त रहें। अपनी सोच को सकारात्मक रखें। उस पल और आने वाले सुनहरे समय के बारे में सोचे जब आपका शिशु आपके साथ होगा।
आपके प्रसव को अब कुछ ही समय बचा है यही नहीं कई मामलों में दी गयी तिथि से पहले ही प्रसव हो जाता है। इसलिए अपनी शॉपिंग और पैकिंग पूरी कर लें। अस्पताल के लिए आवश्यक चीज़ों को पैक कर लें। इसके साथ ही शिशु के स्वागत और शिशु के जन्म के बाद ज़रूरी चीज़ों की तैयारी भी पहले ही करके रखें।
यह समय है जब आपको अपने प्रसव और आने वाले जीवन के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह से तैयार होना चाहिए। शिशु के आगमन के बाद आपके जीवन में क्या-क्या बदलाव आने वाले हैं, इन्हे लेकर मानसिक रूप से भी आप पूरी तरह से तैयार हो जाएँ। खुद के लिए भी समय निकालें क्योंकि शिशु के जन्म के बाद आपको अपने लिए समय नहीं मिल पायेगा।
गर्भावस्था के अंतिम चरण में गर्भवती महिला को सावधान रहना चाहिए। अगर कुछ भी परेशानी हो तो तुरंत डॉक्टर से मिलना चाहिए जैसे कि पेट में तेज़ दर्द, रक्तस्त्राव, दिखाई न देना, बुखार आदि। इसके साथ ही अकेला रहने की जगह हमेशा किसी के साथ रहे ताकि आपातकालीन स्थिति में आपको मदद मिल सके।
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