कहीं आपका बच्चा ऑटिज्म से पीड़ित तो नहीं? आइये जानें

कहीं आपका बच्चा ऑटिज्म से पीड़ित तो नहीं? आइये जानें

हम कई बार ऐसे लोगों के बारे में सुनते हैं विशेषकर के बच्चे जो स्वलीनता या ऑटिज्म (Autism) की बीमारी के शिकार होते हैं परंतु फिर भी हम इसके बारे में कम ही जान पाते हैं। बहुत कम लोगों को इसके बारे में पता है और उनमें से कुछ ही लोगों को इस बीमारी से छोटे बच्चों और उनके परिवार को होने वाले नुकसान का एहसास है। आइयें जानें ऑटिज्म (Autism in Hindi) के विषय में पूरी जानकारी।

ऑटिज्म यानी स्वलीनता असल में कुछ ऐसी स्थितियों को दर्शाती है जो कि एक व्यक्ति और उसके संवाद और बातचीत करने की क्षमता पर असर डालता है। ऑटिज्म या ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसआर्डर (एसीडी – Autism Spectrum Disorder) एक गंभीर विकासात्मक विकार है जिसके कारण व्यक्ति को अपने जीवन में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है जैसे कि सामाजिक कौशल, दोहरा व्यवहार, भाषण तथा अशाब्दिक संप्रेक्षण।

ऑटिज्म कई प्रकार के होते हैं जिसके चलते यह विकार काफी लोगों तक फैला हुआ है और जिससे बच्चों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसलिए यह बीमारी हर व्यक्ति पर अपना अलग-अलग प्रभाव डालती है।

 

ऑटिज्म के लक्षण (Symptoms of Autism in Hindi)

  • ऑटिज्म के संकेत तथा लक्षण 2 से 3 साल की उम्र में दिखने लगते हैं। हालांकि कभी-कभी कुछ केस में 18 महीने की उम्र में भी इसके लक्षण देखे गए हैैं।
  • ज्यादातर ऑटिज्म व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता पर असर डालता है जिससे उसके मानसिक योग्यता धीमी और कम होने लगती है।
  • हर शिशु और बच्चा ऑटिज्म के अलग-अलग लक्षण और असर दिखाता है। यह कुछ बच्चों में सौम्य गति से हो सकता है जिससे बच्चों के विकास पर असर पड़ता है और जैसे-जैसे उसकी उम्र बढ़ने लगती है, वह भी धीरे-धीरे बढ़ने लगता है।
  • लड़के लड़कियों के मुकाबले ऑटिज्म की बीमारी से ज्यादा प्रभावित होते हैं।

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ऑटिज्म के इन संकेतों का ना करें नजरअंदाज (Signs of Autism in Hindi)

कुछ ऐसे लक्षण भी होते हैं जिन्हें हमें ऑटिज्म के साथ नहीं जोड़ना चाहिए परंतु निश्चित होने के लिए हमें एक बार चेकअप जरूर करा लेना चाहिए। अगर आपके बच्चे के विकास में नीचे दिए गए लक्षणों में से कोई भी लक्षण के संकेत दिख रहे हैं तो आप डॉक्टर से सलाह ले, यही सबसे बेहतर विकल्प होगा। आइयें उम्र के अनुसार बच्चों में ऑटिज्म के लक्षणों  को पहचानें।

 

6 महीने का बच्चा (Autism Signs in 6 Month Baby )

  • बहुत कम या ना के बराबर आँखों से संपर्क करना
  • लोगों के प्रति उदास भाव 
  • आलस के भाव 
  • स्तनपान के समय मां की तरफ ना देखना

 

 

9 महीने का बच्चा

  • बिना बोले बात करना 
  • अपना नाम सुनने पर कोई मुस्कुराहट या प्रतिक्रिया ना देना 
  • अलग-अलग ध्वनियों पर कोई प्रतिक्रिया ना देना
  • चेहरे पर अभिव्यक्ति की कमी

 

1 साल का बच्चा (Symptoms of Autism in 1 Year Child)

  • बडबडाने का कोई संकेत नहीं या नो बेबी टॉक 
  • किसी भी तरह के इशारे या बात करने की कोशिश ना करना  
  • किसी के कुछ पूछने या कहने पर कोई प्रतिक्रिया ना देना

 

18 महीने का बच्चा

  • किसी भी अक्षर या वाक्य को ना दोहराना
  • किसी भी छोटे अक्षर या आसान वाक्य का उच्चारण ना करना
  • किसी भी प्रकार का आनंद ना उठाना

 

2 साल का बच्चा (Symptoms of Autism in 2 Year Baby)

  • शब्दों का ना दोहराना
  • छोटे शब्दों या वाक्यांशों को ना दोहरा पाना
  • अपनी भावनाओ को न व्यक्त कर पाना

 

स्वलीनता किस कारण से होता है (Causes of Autism in Hindi)

अभी तक यह माना जाता था कि ऑटिज्म की बीमारी जेनेटिक कारण से होती है परंतु अभी लेटेस्ट रिसर्च से यह पता चला है कि कुछ पर्यावरणीय कारक हैं जो शिशुओं में ऑटिज्म की बीमारी को बढ़ावा देते हैं जो कि विकार का रूप ले लेता है।

  • माँ से संक्रमण विशेष रूप से रूबैला जो की गर्भावस्था के दौरान होता है।
  • गर्भाधारण के समय पिता और मां की उम्र।
  • दो गर्भधारण के बीच का समय (फिर से गर्भधारण के लिए 2 वर्ष से अधिक समय तक के लिए इंतजार करना ही सबसे बेहतर है)।
  • मां का स्वास्थ्य और पोष्टिक आहार बच्चों में ऑटिज्म के खतरे को कम कर सकता है।
  • जो मां गर्भवती होने से पहले विटामिन सप्लीमेंट लेती है उनमें स्वलीनता के खतरे कम होते हैं।
  • जटिलताएं जैसे बच्चे में जन्म के दौरान ऑक्सीजन की कमी होना, ऑटिज्म की बीमारी को बढ़ावा देता है।

कोई रक्त परीक्षण, मस्तिष्क स्कैन या शारीरिक परीक्षण कराने से इस समस्या का हल नही हो सकता हैं। यह केवल बच्चों के व्यवहार से ही निर्धारित किया जा सकता है।

 

ऑटिज्म का इलाज (Treatment of Autism in Hindi)

जाँच (Screening of Autism in Hindi)

अगर आपको ऐसा लगता है कि ऊपर दिए गए लक्षणों में से आपके बच्चे में कुछ ऐसे लक्षण है तो बेहतर यही है कि आप मेडिकल सहायता ले। आमतौर पर डॉक्टर माता-पिता को पहले एक प्रश्नावली भरने को देते हैं। इसमें उन्हें सीधे-सीधे हां या ना में जवाब देना होता है। यह बच्चों के व्यवहार की एक प्रतिक्रिया बनाने में मदद करता है। चिकित्सक या मनोविज्ञान इसका आयोजन करते हैं ताकि उनको एएचडी के लक्ष्मण के साथ किसी भी बच्चे की प्रारंभिक जांच में मदद मिले।

 

विकास विशेषज्ञ से सलाह ले (Consultation with Development specialist)

अगर शिशु में स्क्रीनिंग के बाद ऑटिज्म के लक्षण पाए गए हैं तो यह आपका अगला कदम हो सकता है। कोई भी विशेषज्ञ केवल स्क्रीनिंग को ही ऑटिज्म की बीमारी का एकमात्र आधार नहीं मानता है। वह एक-एक करके ही इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि बच्चे में ऑटिज्म है या नहीं।

 

स्वलीनता से पीड़ित बच्चों में कुछ दोहराव व्यवहार (Some repetitive behaviors observed in autistic children)

  • हाथों का झडकना
  • उँगलियों में सरसरी
  • एक दिशा की तरफ लगातार देखना
  • शब्द या आवाज दोहराना
  • सिर मारना
  • आगे पीछे घूमना
  • खेलने और खिलौने को रखने के कुछ अलग तरीके
  • कानों को दोहना

 

उपचार (Important Therapies of Autism in Hindi)

कुछ ऐसे उपचार ऑटिस्टिक बच्चों को और उनके परिवार को उपलब्ध कराए गए हैं जो ऑटिज्म की बीमारी को सही तरीके से संभालने में मदद करते हैं और उनको ऑटिज्म के लक्षणों से बच्चों को बचाने में मदद करते हैं।

गुस्से पर काबू पाना (Anger management)
यह तेज भावनात्मक व्यवहार, दिमाग को शांत रखने, बदलते व्यवहार को एडजस्ट करने में और चिंता को कम करने में मदद करता है।

फैमिली थेरेपी (Family Therapy)
यह उपचार मनोवैज्ञानिकों द्वारा दिया गया है विशेषकर माता-पिता के लिए जिससे कि वे बच्चे की स्थिति को समझ सकें और उसकी मदद कर सके। उन्हें बच्चों के व्यवहार के प्रति शांत रहने की ओर सिचुएशन को देखकर निराश ना होने की सलाह दी जाती है।

स्पीच थेरेपी (Speech Therapy)
यह बच्चों की स्पीच और भाषा का विकास करने में मदद करता है और बेहतर संचार के लिए भी महत्वपूर्ण साबित हुआ है।

नैदानिक मनुचिकित्सक (Clinical psychologist)
नैदानिक मनोचिकित्सक थेरेपी द्वारा मानसिक विकार को कम करने में सहायता मिलती हैं।

 

 

विज्ञान और प्रौद्योगिकी आज के युग में एक बेंचमार्क मंच पर पहुंच गए हैं। इसलिये आज के समय में कुछ भी नामुमकिन और लाइलाज नहीं है परंतु सही समय पर बीमारी पर ध्यान देने से ही बीमारी का इलाज हो सकता है। हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ऑटिज्म पीड़ित बच्चे असक्षम नहीं है बल्कि वे विशेष रूप से विकलांग है। उन्हें बस थोड़ा ज्यादा देखभाल, प्यार और मदद की जरूरत है जिससे कि वे औरों की तरह एक आम जिंदगी जी सकें।
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