खूबसूरती व अश्लीलता देखने वाले की आँखों में होती हैं: सार्वजनिक स्तनपान पर केरल उच्च न्यायालय की टिप्पणी

खूबसूरती व अश्लीलता देखने वाले की आँखों में होती हैं: सार्वजनिक स्तनपान पर केरल उच्च न्यायालय की टिप्पणी

किसी के लिए जो अश्लीलता है, दूसरे के लिए कलाकारी हो सकती है। एक आदमी के लिए बेहूदगी, दूसरे के लिए गीता जैसी हो सकती है। ये टिप्पणी करते हुए केरल उच्च न्यायालय (Kerela High Court) का मलयालम भाषा की पत्रिका के खिलाफ लगाई गई याचिका खारिज करते हुए मार्च में दिया गया आदेश कुछ दिन पहले सभी के सामने सार्वजनिक कर दिया|

क्या हैं पूरा मामला?

मार्च, 2018 में मलयालम एक्ट्रेस गिलू जोसेफ ने एक बच्चे को स्तनपान कराते हुए फोटोशूट कराया था, जिसे गृहलक्ष्मी मैगजीन ने कवर पर छापा था। कवर पर एक माँ को सार्वजनिक स्तनपान के दौरान घूरने वालों को दिए गए संदेश में कहा गया था, ‘केरल से माएं कह रही हैं, कृपया घूरें नहीं, हमें स्तनपान की जरूरत है।’

मैगजीन छपने के एक सप्ताह बाद ही सोशल मीडिया पर विवाद शुरू हो गया था। इस तस्वीर को कामुक कहने के साथ ही धार्मिक और सांप्रदायिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला कहा गया|

इस मामले पर वकील मैथ्यू विल्सन ने यह कहते हुए केरल की कोल्लम कोर्ट में याचिका दायर की थी कि यह तस्वीर कामुक हैं व महिला की गरिमा को नीचा दिखाती है। इतना ही नहीं कुछ लोगों की आपत्ति इस बात पर भी थी कि गिलू जोसेफ ने सिंदूर लगाने के साथ ही मंगलसूत्र भी पहना है, जबकि वो ईसाई धर्म को मानती हैं।

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न्यायालय ने क्या फैसला सुनाया? (Kerela High Court Verdict in Hindi)

तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एंटोनी डोमिनिक की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने विल्सन की तरफ से लगाई गई इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि हम अपने श्रेष्ठ प्रयास के बावजूद इस तस्वीर में अश्लीलता नहीं देख पा रहे हैं।

मैगजीन के खिलाफ पोक्सो के साथ ही जुवेनाइल जस्टिस ऐक्ट के सेक्शन 45 व महिला अश्लील प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1986 के तहत मामला दर्ज किया गया था। गुरुवार को न्यायालय ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा,

‘जिस तरह खूबसूरती देखने वालों की आंखों में होती है, उसी तरह अश्लीलता भी देखने वालों की आंखों में ही होती है। हमें नहीं लगता है कि इस फोटो में कुछ अश्लील है और न ही इसके कैप्शन में पुरुषों के लिए कुछ आपत्तिजनक है।’

न्यायालय ने दलील दी कि किसी एक शख्स की अश्लीलता दूसरे आदमी की नजरों में अच्छाई हो सकती है। पीठ ने यह भी कहा कि “भारतीय मनोविज्ञान काफी मैच्योर है। मैगजीन के कवर पर ऐसा कुछ भी नहीं था, जो महिलाओं या पुरुषों के लिए आपत्तिजनक हो। हम तस्वीर को उन्हीं नजरों से देख रहे हैं जिन नजरों से हम राजा रवि वर्मा जैसे कलाकारों की पेंटिंग्स को देखते हैं चूंकि सौंदर्य देखने वाले की नजर में होता है उसी तरह अश्लीलता भी संभवत: नजर में होती हैं|”

कामासूत्र व अजंता की मूर्तियों का किया जिक्र

न्यायमूर्ति एंटोनी डोमिनिक व डामा सेशाद्री नायडू की पीठ ने कहा कि भारतीय कला ने हमेशा मनुष्य के शरीर को खूबसूरती से दर्शाया है, चाहे वह कामसूत्र हो, राजा रवि वर्मा की पेंटिंग हो या अजंता की मूर्तियां।

पहले जमाने के लोग ज्यादा समझदार थे। हमने इस तस्वीर को उसी नजर से देखा है, जिनसे हम राजा रवि वर्मा जैसे चित्रकारों की पेंटिंग देखते हैं। जैसे सुंदरता दर्शक की आंखों में बसी होती है, वैसे ही शायद अश्लीलता भी दर्शक की निगाह में होती है।

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क्या कहा गिलू जोसेफ ने?

गिलू जोसेफ ने खुलकर न्यायालय के फैसले की प्रशंसा की हैं। उन्होंने कहा,

“मैं इस फैसले से वास्तव में बहुत खुश हूं क्योंकि हम ऐसे समाज में रहते हैं जहां कला की हमेशा सही मायने में सराहना नहीं की जाती है। व्यक्तिगत रूप से, मैं अपने शरीर से बहुत अधिक हूं|”

उन्होंने आगे कहा कि यह हम सभी के लिए खुशी की बात है कि जजमेंट आर्टिस्ट के फेवर में आया है। हम उस शख्स का भी धन्यवाद देते हैं, जिसने यह केस फाइल किया क्योंकि उसकी वजह से ही हाईकोर्ट ने हमारी सराहना की। जोसेफ ने आगे कहा कि कोर्ट केस को लेकर उनके दिमाग में बिल्कुल भी डर नहीं था, क्योंकि वो जानती थीं कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया हैं।

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