गर्भावस्था की दूसरी तिमाही या दूसरा चरण यानी चौथे से लेकर छठे महीने (4th to 6th Month Pregnancy Stage) तक के समय को प्रेगनेंसी का सबसे खुशनुमा समय माना जाता है। दूसरी तिमाही में शिशु का विकास तेज़ी से होने के कारण पेट बढ़ना शुरू हो जाता है और गर्भ में पल रहा शिशु भी अपनी गतिविधियों को शुरू कर देता है। ऐसे में होने वाली माँ का उत्साह और भी बढ़ जाता है। गर्भावस्था की दूसरी तिमाही (Second Trimester of Pregnancy) में गर्भपात का खतरा काफी कम हो जाता है। इसलिए महिला इस समय को पूरा एन्जॉय और सदुपयोग कर सकती है।
पहले चरण के मुकाबले गर्भावस्था के दूसरे चरण में गर्भवती महिला को बहुत कम शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है लेकिन उसके शरीर में लगातार बदलाव आते हैं। इस दौरान होने वाले शारीरिक बदलाव कुछ इस तरह से हैं:
चौथे से लेकर छठे महीने यानी दूसरी तिमाही में गर्भ में पल रहे शिशु का तेज़ी से विकास होता है जिसके कारण माँ के पेट के आकार में वृद्धि होती है। पांचवें और छठे महीने में आपके पेट के आकार से साफ पता चलता है कि आप गर्भवती हैं। यही नहीं इस दौरान स्तनों में भी वृद्धि होती है। स्तनों को सपोर्ट मिले. इसके लिए उचित ब्रा का प्रयोग करें।
केवल गर्भाशय के आकार में ही वृद्धि नहीं होती बल्कि महिला का वजन भी बढ़ता है। वजन के बढ़ने के कारण कमर में दर्द की समस्या भी बढ़ जाती है। इस दौरान पेट में नीचे की तरफ दर्द होना आम है।
गर्भावस्था के दूसरे चरण में वजन और गर्भाशय के बढ़ने के कारण पैरों में दर्द और सूजन होती है। इस दौरान खून की कमी के कारण भी यह समस्या हो सकती है। इससे बचने के लिए पैरों में मालिश करें और गर्म पानी से अपने पैरों को सेंक लें।
वजन के बढ़ने और हार्मोन्स में होने वाले बदलाव के कारण गर्भावस्था के दूसरे चरण में आपकी साँस फूल सकती है और अधिक थकावट भी हो सकती है।
हार्मोन्स के बदलने के कारण इस दौरान नाक से खून निकलने की समस्या भी हो सकती हैं। ऐसा रक्त प्रवाह के बढ़ने के कारण होता है। इस कारण मसूड़े संवेदनशील हो जाते हैं जिसके कारण मसूड़ों से खून निकलना भी सामान्य है।
इस दौरान योनि से सफेद पानी भी निकलता है। हालाँकि यह आपके अच्छे स्वास्थ्य की तरफ इशारा करता है लेकिन अगर यह पानी किसी अन्य रंग का हो जैसे पीला, लाल आदि और उससे बदबू आ रही हो तो तुरंत डॉक्टर से सम्पर्क करना चाहिए।
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गर्भावस्था के दूसरे चरण में मानसिक स्थिति में लगातार बदलाव आता है। शरीर में लगातार होने वाले शारीरिक परिवर्तनों की वजह से इस दौरान उदासी, तनाव या डिप्रेशन जैसी परेशानियां हो सकती है। यह स्थिति कम दिनों से लेकर महीनों तक रह सकती हैं। मूड स्विंग्स होना भी इस दौरान आम हैं। हालाँकि गर्भावस्था के दूसरे चरण में शारीरिक समस्याएं कम हो जाती हैं इसलिए चिंता, तनाव जैसी समस्याएं भी कम हो जाती हैं। तनाव से मुक्ति पाने के लिए अपने क़रीबी लोगों और डॉक्टर की सलाह लें।
गर्भावस्था की दूसरी तिमाही (Second Trimster) में शिशु का विकास हो रहा होता है, ऐसे में उसकी हड्डियों के विकास और मजबूती के लिए माँ के लिए कैल्शियम युक्त आहार का सेवन करना बहुत जरूरी है। अपने आहार में दूध, दही ,पनीर, मक्खन के साथ-साथ सोया दूध, हरी पत्तेदार सब्जियां शामिल करें। इन चीज़ों से आपको प्रोटीन भी प्राप्त होगा। प्रोटीन भी इस समय आपके लिए आवश्यक है। खाना पकाने के लिए वनस्पति तेल का उपयोग करें।
गर्भावस्था की दूसरी तिमाही (What to eat during second Trimster) में क्या खाना चाहिए, इसका खास ध्यान रखना पड़ता है। गर्भावस्था में शिशु के दिमाग के सही विकास के लिए आपके आहार में ओमेगा 3 फैटी एसिड का होना जरूरी है। इसके लिए अपने आहार में पत्तागोभी, दही, ब्रोकोली के साथ-साथ मछली, माँस आदि को भी शामिल करें। इनसे आपको प्रोटीन और आयरन भी प्राप्त होंगे।
गर्भावस्था में गर्भवती महिला को अधिक ऊर्जा और कैलोरी की आवश्यकता होती हैं लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि आप कुछ भी खाएं। अपने आहार में हमेशा पौष्टिक चीज़ों को ही शामिल करें जो आपको ऊर्जा प्रदान करे और अपनी अन्य ज़रूरतों को भी पूरा करे जैसे दलिया, बाजरा, दालें, चावल, दूध, हरी सब्ज़ियाँ, फल इत्यादि। इसके साथ ही आप ब्राउन राइज, होल वीट ब्रेड, साबुत अनाज को भी अपने आहार में शामिल कर सकते हैं। यह सब फ़ाइबर से भरपूर होते हैं जिससे कब्ज और अन्य समस्याएं नहीं होती।
दूसरी तिमाही में ही नहीं बल्कि पूरी गर्भावस्था के दौरान आप हरी सब्जियां और फल खाना न भूलें। सब्जियों और फलों में विटामिन भरपूर होते हैं। जबकि हरी सब्जियों में फोलिक एसिड भी होता है जो गर्भावस्था के दौरान बेहद आवश्यक है। विटामिन सी युक्त फल जैसे संतरे, कीवी, नींबू, मौसमी आदि से आयरन मिलता है।
गर्भवती महिला के शरीर में खून की कमी न हो, इसके लिए उन्हें आयरन युक्त आहार का सेवन करना आवश्यक है। इसके लिए साबुत अनाज, हरी सब्जियां, राजमा, ब्रोकोली जैसी चीज़ें खाएं। अगर शरीर में आयरन की कमी है तो डॉक्टर आपको सप्प्लिमेंट्स भी दे सकते हैं। शरीर में आयरन का अवशोषण अच्छे से हो इसके लिए विटामिन सी युक्त चीज़ों का सेवन करना न भूलें।
हार्मोन्स में होने वाले बदलावों के कारण गर्भावस्था में महिला को कब्ज की शिकायत रहती है। दूसरी तिमाही में यह समस्या बढ़ जाती है। कब्ज की समस्या को दूर करने और शरीर से गंदगी को बाहर निकालने के लिए फ़ाइबर युक्त आहार लें। साबुत अनाज, ओट्स, हरी सब्ज़ियाँ, फल, दलिया आदि खाएं और जितना अधिक हो सके उतना पानी पीएं।
गर्भ में पल रहे शिशु के मानसिक विकास के लिए आयोडीन का होना बेहद आवश्यक है। इसलिए इसकी कमी पूरी करने के लिए आयोडीन युक्त नमक का ही सेवन करे।
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गर्भावस्था के दूसरे चरण में अपने बैठने और उठने के तरीके पर खास ध्यान दें। इस समय आपका वजन बढ़ रहा होता है इसलिए आप कभी भी पालथी मार कर न बैठे। ऐसा करने से खून का संचार सही से नहीं होगा जो शिशु के लिए हानिकारक है। इसके साथ ही एकदम झटके से न उठें। ऐसा करने से आपको चक्कर आ सकते हैं और आप गिर सकती हैं।
गर्भावस्था के दूसरे चरण में सोते हुए भी ध्यान दें। कभी भी पेट के बल न सोएं बल्कि बाईं तरफ सोएं। आपका पेट के बल सोना आपके शिशु के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
दिन में दो या तीन बार अधिक मात्रा में भोजन ग्रहण करने की जगह बार-बार लेकिन कम मात्रा में खाना खाएं।
अपनी मर्ज़ी से कोई भी दवाई न लें। आपके डॉक्टर ने जो सप्लीमेंट्स आपको दिए है, उनका ही सेवन करें। कोई भी अन्य सप्लीमेंट लेने से पहले डॉक्टर की सलाह आवश्यक लें।
अगर आपको कोई शारीरिक समस्या नहीं है तो दूसरी तिमाही (Second Trimster) में आप शारीरिक सम्बन्ध बना सकते हैं । पहली तिमाही में महिला अधिक परेशानियों से गुजरती है जिसके कारण उसकी शारीरिक संबंधों में दिलचस्पी कम हो जाती है लेकिन दूसरी तिमाही में यह समस्याएं काफी हद तक कम हो जाती हैं और महिला अधिक ऊर्जा से भरपूर महसूस करती है। इस दौरान शारीरिक सम्बन्ध बनाने से शिशु को कोई समस्या नहीं होती क्योंकि शिशु गर्भाशय में एमनियोटिक थैली में होता है जिसके कारण शारीरिक सम्बन्ध बनाने से न उसको कोई दर्द होता है और न ही कोई अन्य समस्या। आप अपने डॉक्टर से भी इस बारे में पूछ और राय ले सकते हैं।
दूसरी तिमाही को गर्भावस्था का सबसे बेहतरीन समय माना जाता है जब न केवल आप ऊर्जावान महसूस करती हैं बल्कि शारीरिक समस्याएं भी बहुत कम हो जाती हैं। इस दौरान आपको हर परेशानी और चिंता को भूल कर अपनी एनर्जी और इस समय का पूरा सदुपयोग करना चाहिए। आने वाले शिशु के लिए शॉपिंग करें, अच्छी किताबें पड़ें, मूवीज देखें और वो सब करें जिसमें आपकी रूचि है। यह समय लौट कर नहीं आता इसलिए इसे यादगार बनाएं।
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