बच्चा नौ महीने माँ के गर्भ में पलने के बाद इस दुनिया में जन्म लेता है। यह नौ महीने न केवल शिशु बल्कि माँ के लिए भी बेहद मुश्किल होते हैं। आमतौर पर बच्चे पूरे नौ महीने यानी 37 हफ्ते के बाद जन्म लेते हैं लेकिन कई बार कुछ आपातकालीन स्थितियों के कारण बच्चे की डिलीवरी समय से पहले करनी पड़ती है। अगर बच्चा 37 हफ्ते से पहले जन्म ले लेता है तो उसे प्री-मेच्योर शिशु कहा जाता है और ऐसे बच्चों को बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अगर बच्चा सातवें महीने में (premature baby 7 months) जन्म ले लेता है तो यह समस्याएं और भी अधिक बढ़ जाती है।
बच्चा जितना जल्दी जन्म लेता है, समस्या उतनी ही अधिक होती है क्योंकि उनका पूरा विकास नहीं हुआ होता हैं। ऐसा पाया गया है कि एक साल में जन्म लेने वाले कुल शिशुओं में से 13 प्रतिशत बच्चों का जन्म सातवें महीने में होता है और हमारे देश में सबसे अधिक शिशु समय से पूर्व जन्म लेते हैं। बहुत से मामलों में शिशु के जन्म से पहले यह बताना लगभग असंभव होता है कि प्रसव समय से पूर्व होगा या नहीं। अगर आपका बच्चा भी सातवें महीने में जन्म लेता है तो आपको विशेष देखभाल की आवश्यकता है, ताकि शिशु का विकास सही से हो। आइये जानते हैं सातवें महीने में जन्म लेने वाले शिशु की देखभाल के बारे में।
अगर शिशु का जन्म सातवें महीने में हुआ है तो शिशु को संक्रमण से बचाना सबसे अधिक आवश्यक है। शिशु के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास गर्भ में आखिरी के महीनों में होता है लेकिन अगर शिशु सातवें महीने में ही जन्म ले लेता है इससे उसके शरीर की इम्युनिटी बहुत कम होती है। ऐसे में उसे संक्रमण होने की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है।
अपने प्री-मच्योर शिशु को संक्रमण से बचाने के लिए साफ-सफाई का खास ध्यान रखें। इसके साथ ही बाहर से आने वाले लोगों को शिशु से ज्यादा न मिलने दें। इससे भी संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। ध्यान रहे शिशु के आसपास कोई भी धूम्रपान न करें क्योंकि इससे शिशु की छाती में संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती है। ऐसी हर चीज़ से बच्चे को दूर रखें जिससे उसे संक्रमण होने का खतरा हो। माँ को भी शिशु को उठाने या स्तनपान कराने से पहले अपने हाथों को अच्छे से धो लेना चाहिए।
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समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चे अपने शरीर का तापमान स्थिर नहीं रख पाते, ऐसे में शिशु के शरीर को गर्म रखना बेहद आवश्यक है। अगर मौसम ठंडा है तो ऐसे में आप को खास ध्यान रखना है। कमरे का तापमान अधिक होना चाहिए। शिशु को अच्छे से गर्म कपड़ों में लपेट कर रखना चाहिए हालाँकि कपडे इतने भी ज्यादा न हो कि बच्चे को अच्छे से साँस न आये। उन्हें रोज़ न नहलाएं बल्कि स्पंज कर लें। सातवें महीने में पैदा हुए बच्चे का विकास सही से हो इसके लिए आपको उसे हमेशा अपने शरीर के पास रखना चाहिए। माँ के शरीर से निकली गर्मी बच्चे के विकास में सहायक होती है।
सातवें महीने पैदा हुए बच्चे के विकास और स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है कि उसे पर्याप्त पोषक तत्व मिले। वैसे तो हर शिशु के लिए माँ का दूध अमृत के समान है लेकिन प्री-मच्योर शिशु के लिए माँ का दूध बहुत ही जरूरी है। ऐसे में शिशु को केवल माँ का दूध ही देना चाहिए। डिब्बे, गाय या भैंस का दूध शिशु को न दें। अगर बच्चा स्तनपान नही कर पा रहा हो तो आप उसे कटोरी या चम्मच की मदद से भी अपना दूध दे सकती है या उसे बाद के लिए स्टोर कर सकती है। अगर किन्हीं कारणों से यह संभव न हो तो आप डॉक्टर से सलाह लें। माँ का दूध न केवल शिशु को अच्छे से पच जाता है बल्कि यह संक्रमण से भी बच्चे को बचाता है।
प्री-मैच्योर बच्चे को खास देखभाल की ज़रूरत होती है। ऐसे शिशु को सुरक्षित महसूस कराना बेहद आवश्यक है। माँ को हमेशा अपने शिशु को अपने पास रखना चाहिए और उससे आंखें मिला कर लगातार बातें करनी चाहिए। उसकी पीठ और सिर को सहलाएं। ऐसा भी पाया गया है कि आपके और आपके परिवार की आवाज़ और संगीत सुनकर बच्चे को अच्छा महसूस होता है व उसके विकास में भी आसानी होती है। शिशु की हर गतिविधि पर ध्यान दें। इससे शिशु आपके और भी करीब आएगा और सुरक्षित महसूस करेगा।
सातवें महीने में जन्म लेने वाले बच्चों के दिमाग का वो भाग जो हमारे शरीर की साँस लेने की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है वो पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ होता है। इसलिए प्री-मच्योर शिशु के साँस लेने की प्रक्रिया सामान्य बच्चों से अलग होती है। ऐसे बच्चे थोड़े-थोड़े अंतराल में साँस लेते हैं। अस्पताल में तो इसे मॉनिटर करने का पूरा इंतजाम होता है लेकिन अगर आपका बच्चा सातवें महीने में पैदा हुआ है और आप घर पर उसकी देखभाल कर रहे हैं तो आप घर पर प्रयोग होने वाले मॉनिटर का प्रयोग करें या खुद इसे मॉनिटर करें।
यह परेशानी शिशु के बड़े होने तक सामान्य हो जाती है। सातवें महीने में पैदा हुए बच्चे सामान्य बच्चों की तुलना में कम वजन के पैदा होते हैं। ऐसे बच्चों को भविष्य में ‘ओस्टियोपेनिया’ का खतरा होने की संभावना होती है। ऐसे में शिशु में होने वाली समस्या पर नजर रखना बेहद आवश्यक है।
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सातवें महीने या प्री-मच्योर बच्चों को डॉक्टर बाहर या भीड़ भाड़-भरी जगहों में ले जाने से मना करते है। इसके साथ ही उन्हें अधिक सफर भी करने की सलाह नहीं दी जाती हैं। ऐसे में अगर आप चाहे तो किसी ऐसी जगह बच्चे को ले जा सकती हैं जो हरी भरी और शिशु के लिए सुरक्षित हो। यह जगह ऐसी हो जहां प्रदूषण या धूल-मिट्टी और अधिक लोग न हों।
शिशु का जन्म किस महीने में होगा, इसके बारे में पहले से डॉक्टर भी नहीं बता पाते है। सातवें महीने में पैदा होने वाले शिशु को आँखों और साँस सम्बन्धी रोग होने की संभावना भी सबसे अधिक होती है। इसलिए अगर आपका शिशु समय से पहले पैदा हुआ है तो समय-समय पर चैकअप कराते रहें ताकि पता चल सके कि शिशु का विकास सही से हो रहा है या नहीं। प्री मच्योर शिशु के लिए आप जो सबसे बेहतरीन कर सकती हैं, वो है उसकी देखभाल। उसकी देखभाल अच्छे से करे और साथ ही आपके प्यार से बच्चे का विकास सही से और सामान्य तरीके से होगा। आपका प्यार और देखभाल शिशु को सामान्य जीवन जीने में मददगार साबित हो सकता है।
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