एक खुश माँ ही ख़ुशहाल बच्चे को जन्म दे सकती है।
शादी के 2 साल बाद हमने बच्चे को लेकर प्लानिंग करना शुरू किया और कुछ समय बाद मुझे पता चला कि मैं माँ बनने वाली हूँ तो मैं और मेरे पति बहुत खुश थे।
ऐसा लगा जैसे जब हमने चाहा, बिना इंतज़ार किए हमें ये अच्छी खबर मिल गई हो। पर इस गुड न्यूज़ के साथ-साथ जो परेशानी आने वाली थी उसके बारे में अभी मुझे कुछ नहीं पता था।
प्रेगनेंसी कन्फर्म होते ही कुछ दिन बाद मुझे बहुत ज्यादा उल्टियां और बेचैनी महसूस होती थी। सभी का कहना था कि बहुत सी होने वाली माँओं में ये आम बात है। मैंने भी यही सोचा। पर धीरे-धीरे मुझे कोई भी खाना पचना बंद हो गया। मैं पति के साथ अकेले रहती थी तो मुझे सब कुछ मैनेज करना बहुत मुश्किल हो जाता था।
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जब हालत ये हो गई कि मैं कमजोरी के कारण खड़े भी नहीं हो पा रही थी तो मुझे लगा कुछ तो गड़बड़ है, मैंने बिना देर किए अपने पति को मुझे डॉक्टर के पास ले जाने के लिए कहा। डॉक्टर ने एक नज़र देखते ही कहा कि आपका पेट जितना नज़र आ रहा है 2 महीने में उतना ज्यादा होना बिलकुल भी नॉर्मल नहीं है। ये सुनते ही मानो मेरे पैरों तले से जमीन ही खिसक गई।
डॉक्टर ने स्कैन करने को बोला तो हमने बिना समय गवाएं स्कैन करवाया। स्कैन में पता चला कि मेरे पेट में सिस्ट (Ovarian Cysts) है जिसकी वजह से बच्चे की ग्रोथ अच्छे से नहीं हो पाएगी। इसीलिए बच्चे को अबो्र्ट करना ही ऑप्शन है। नहीं तो हो सकता है बच्चा खुद ही अबो्र्ट हो जाए। यह सब सुन कर मैं अपना रोना रोक ही नहीं पाई।
पर मैं इतनी जल्द बाजी में कोई फैसला नहीं लेना चाहती थी। आज मुझे समझ में आ रहा था कि कैसे बच्चे और माँ का रिश्ता पहले दिन से ही कितना मजबूत हो जाता है। हमने डॉक्टर से अलग अलग दूसरी , तीसरी बार ओपिनियन लिया। एक डॉक्टर के पास हमे ये उम्मीद मिली कि आपका बच्चा 4th महीने तक सही रहता है तो उसके बाद सिस्ट का ऑपरेशन किया जा सकता है।
पर इन सब में मैं अपनी सेहत से ज्यादा अपने होने वाले बच्चे की सेहत को लेकर परेशान थी। कहीं ऑपरेशन से उसे तो कोई परेशानी नहीं होगी? उसके बाद 2 -3 अलग अलग डॉक्टर से सलाह लेने पर उन्होंने मुझे कहा कि बच्चे को कोई दिक्कत नहीं होगी। मैं ये रिस्क लेने को तैयार हो गई। लोगों ने मुझे ऐसा ना करने की सलाह दी पर कहते हैं ना माँ में अपने आप ही कहीं ना कहीं से एक अद्भुत हिम्मत आ जाती है। मेरे साथ भी वही हुआ।
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ऑपरेशन हुआ और मैंने अगले 3-4 दिन हॉस्पिटल में गुजारे ताकि बच्चे को कोई दिक्कत ना हो। उसके बाद भी परेशानी खत्म नहीं हुई। वो कहते हैं ना जितने मुंह उतनी बात। हर कोई कहता ,देखना अब तुम बच्चे को दूध नहीं पिला पाओगी। बच्चा बीमार ही रहेगा। ना जाने क्या क्या।
लेकिन मैंने ठान लिया था मैं अपने बच्चे को दूध जरुर पिलाऊँगी। और यकीन माने मैंने बहुत अच्छे से अपने बेटे को ब्रेस्टफीड करवाया। आज वो एक दम हेल्थी और हैप्पी बेबी है।
मेरा यही मानना है कि बहुत कुछ आपकी इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है। मैं ये नहीं कह रही कि हर कोई वैसे ही रिस्क ले जो मैंने किया , लेकिन अगर आपका शरीर आपकी इच्छा शक्ति आपको अनुमति देती है तो लोगों की बातें सुनकर अपने आप को परेशान ना करें।
आप दूध पिला पाएंगी या नहीं या पिलाना चाहती है या नहीं ये लोगों को नहीं अपने आप के निर्णय पर छोड़ दें। हमेशा याद रखें एक खुश माँ ही एक खुशहाल बच्चे को जन्म देती है। किसी के भी खुश रहने से पहले ज़रूरी है कि आप खुश रहें और पॉजिटिव रहें, उसके बाद आपके मातृत्व के सफ़र को खुशनुमा होने से कोई नही रोक सकता।
अंजना सिंह
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