कैसे अलग होता है दूसरी बार माँ बनना

कैसे अलग होता है दूसरी बार माँ बनना

पहली बार माँ बनना किसी भी महिला के लिए बेहद खास होता है क्योंकि इस दौरान उसके मन में भय के साथ-साथ अलग सा उत्साह होता है। वही दूसरी बार माँ बनने का समाचार भी मन में एक अजीब की खुशी लेकर आता है। हालाँकि दूसरी बार माँ बनाते हुए होने वाली माँ के मन में शंका या भय बहुत कम होते हैं। यह बिल्कुल सही है कि पहले बच्चे के जन्म के बाद माँ के जीवन में कई बदलाव आते हैं। लेकिन जब बात दूसरी बार माँ बनने की आती है तो माँ का आर्थिक, मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार होना भी बेहद आवश्यक है। पहली या दूसरी बार माँ बनने का अनुभव एक-दूसरे से अलग होता है। आज मैं आपसे ऐसी ही कुछ अनुभव को बाँटना चाहती हूँ। जानिए कैसे अलग होता है दूसरी बार माँ  (Dusri Pregnancy) बनना।

 

कैसे अलग होता है दूसरी बार माँ बनना (Differences Between Your First and Second Pregnancy in Hindi)

#1. शारीरिक परिवर्तन (Physical changes)

  • पहली गर्भावस्था के मुकाबले दूसरी बार गर्भवती होने पर महिला मे सबसे बड़ा अंतर यह आता है कि दूसरी गर्भावस्था के दौरान होने वाली माँ का पेट जल्दी बाहर निकल जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पहली गर्भावस्था के समय एब्डॉमिनल एरिया में खिंचाव आ जाता है लेकिन दूसरी बार माँ बनते समय खिंचाव नहीं आता बल्कि जल्दी पेट बाहर आ जाता है। इसके साथ ही दूसरी बाद माँ बनने पर गर्भावस्था के दौरान स्तनों मे भी कोई अधिक बदलाव नहीं आते।
  • आप ऐसा भी महसूस कर सकती हैं कि पहले की तुलना में दूसरी गर्भावस्था के दौरान गर्भ में पल रहे शिशु ने जल्दी किक करना या मूव करना शुरू कर दिया है। ऐसा महसूस होने का कारण यह है कि पहली गर्भावस्था के दौरान आपको यह सब महसूस होने और पहचानने में थोड़ा समय लगता है लेकिन दूसरी गर्भावस्था के दौरान आप शिशु की कोई भी गतिविधि को आसानी से महसूस कर सकती है।
  • अगर आपने  पहली गर्भावस्था के दौरान सुबह होने वाली समस्याओं जैसे मतली, जी-मचलना और उलटी आना आदि को महसूस नहीं किया है तो दूसरी गर्भावस्था के दौरान आप इसे महसूस कर सकती हैं। हालाँकि अगर आपने पहले में यह सब महसूस किया है तो दूसरी में भी यह होना स्वभाविक है।
  • दूसरी गर्भावस्था में प्रसव मे पहले के मुकाबले कम समय लगता है। पहली बार माँ बनने वाली महिलाओं के लिए सामान्यतया प्रसव का समय आठ घंटे का होता है लेकिन दूसरी बार इसी समय को पांच घंटे देखा गया है। पहले बच्चे के जन्म के समय मांसपेशियाँ ढीली पड़ जाती है। इसलिए दूसरे शिशु के जन्म में ज्यादा समय भी नहीं लगता है। प्रसव पीड़ा और प्रसव का हर चरण दूसरी बार प्रसव के समय छोटा होता है और शिशु को बाहर धकेलने में भी ज्यादा समय नहीं लगता।

 

#2. थकान (Fatigue)

गर्भावस्था मे थकान होना स्वभाविक है। इस दौरान प्रोजेस्टेरोन का स्तर बढ़ जाने के कारण महिला जल्दी थक जाती है। लेकिन ऐसा देखा गया है कि पहली गर्भावस्था के मुकाबले दूसरी गर्भावस्था मे कम थकान महसूस होती है।

 

#3. स्पॉटिंग (Spotting)

दूसरी बार माँ बनने पर पेट दर्द और स्पॉटिंग होना भी बहुत सामान्य है। पहली बार माँ बनने के दौरान भी स्पॉटिंग होती है लेकिन दूसरी बार के मुकाबले कम होती है।

 

#4. वजन बढ़ना (Gaining weight)

ऐसा भी पाया गया है कि दूसरी गर्भावस्था मे महिला का वजन अधिक बढ़ जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पहली बार माँ बनने के दौरान मांसपेशियों मे खिंचाव आ जाता है। जो दूसरी गर्भावस्था के दौरान और अधिक बढ़ जाता है जिससे दूसरी बार माँ के वजन मे बढ़ोतरी हो जाती है।

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#5. भय (Fear)

पहली बार माँ बनते समय माँ के मन मे अजीब सा भय होता है। पहली बार माँ गर्भ मे पल रहे शिशु की सेहत, अपने खानपान और अपनी सेहत आदि को लेकर डरी हुई रहती है ताकि उसे या उसके शिशु को कोई समस्या न हो लेकिन दूसरी बार उसका मन हर तरह की शंका या भय से दूर रहता है। हर चीज़ को लेकर वो आश्वस्त और निश्चिंत रहती है और चिंता से दूर रहती है। पहली बार इन चरणों से गुजरने के कारण उसे हर चीज़ की आदत पड़ जाती है।

 

#6. उत्सुकता (Eagerness)

पहली बार माँ बनना माँ के लिए उत्सुकता से भरा होता है। पहली बार माँ बनने से न केवल माता-पिता को बेहद खुशी होती है बल्कि इस खबर से अन्य लोग भी उत्साहित होते हैं। इसके साथ ही शिशु की पहली मूवमेंट, पहली किक और आपका पहला अल्ट्रासाउंड बेहद रोमांचक होता है। दूसरी बार गर्भावस्था मे यह उत्साह कुछ हद तक कम हो जाता है। यही नहीं दूसरी गर्भावस्था मे महिला अपने शरीर मे आने वाले परिवर्तन को लेकर भी निश्चिंत रहती है जबकि पहली बार माँ बनने पर यही परिवर्तन उसे परेशान कर सकते है। पहली गर्भावस्था मे पेट का बढ़ना, जी मचलना और खुद का वजन बढ़ना महिला को परेशान व चिंतित कर देता है लेकिन दूसरी गर्भावस्था मे ऐसा नहीं होता।

 

गर्भावस्था के समय आप शिशु और अपनी सेहत का हर संभव ख्याल रखती है। इसके लिए पहली गर्भावस्था के दौरान वो अपने खाने-पीने, चेक-अप और दवाईयों आदि का पूरा ध्यान रखती है। जबकि दूसरी बार माँ बनते समय माँ अपनी सेहत और अपने बच्चे की सेहत की तरफ इतना ध्यान नहीं देती। इसके साथ ही पहली गर्भावस्था के दौरान माँ प्रेगनेंसी से संबंधित हर जानकारी जुटाती है जैसे आर्टिकल्स और किताबें पढ़ती है, नेट सर्च करती है और अन्य लोगों की राय लेती है आदि। लेकिन दूसरी गर्भावस्था के दौरान उसकी रूचि इन चीज़ों मे भी कम हो जाती है। पहली बार माँ बनने पर महिला उस समय का पूरा आंनद लेती है जबकि दूसरी गर्भावस्था पर वो अपनी स्थिति को सामान्य तरीके से लेती है लेकिन यह भी सच है कि दोनों ही स्थितियों मे होने वाली माँ को एक अलग अनुभव प्राप्त होता है।

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