रेखा अपने दोनों बच्चों के साथ अपने मायके जाने के लिए तैयार हो रही थी जो अब उसके बच्चों का ननिहाल था| रेखा के दो बच्चे हैं, बेटी कुमुद 5 साल की हैं व बेटा मोहित 3 साल का हैं| हर बार गर्मियों की छुट्टियों में रेखा अपने बच्चो के साथ मायके जाती हैं और बच्चे भी अपने ननिहाल जाने का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं| रेखा का भाई राजेश उसे हर बार की तरह लेने आया था|
उसके मायके जाने वाली ट्रेन सुबह 6 बजे चलती थी| इसलिए उसे अपने भाई और बच्चों के साथ सुबह जल्दी ही निकलना था| बैचेनी में रेखा को सारी रात नींद भी अच्छे से नहीं आई और वह सुबह जल्दी उठकर तैयार हो गई| साथ में उसने रास्ते के लिए कुछ परांठे व आलू की सब्जी बनाकर भी सामान में रख लिया क्योंकि सफ़र 7 घंटे का होता था| बच्चे भी नानी के घर जाने को बहुत उत्साहित थे, इसलिए बच्चे भी अपनी मां के साथ जल्दी तैयार हो गए|
रेलवे स्टेशन पर रेखा समय से आधे घंटे पहले ही पहुंच गई और वहां पर बेसब्री से ट्रेन का इंतजार करने लगी| मन ही मन में बुदबुदाने लगती कि पता नहीं आज ही ट्रेन को लेट होना था, पता नहीं कब आएगी ट्रेन, मैं मेरी मां से कब मिलूंगी| इतनी देर में ट्रेन आ गई| रेखा ने अपने पति को बाय बोला और बच्चे भी पापा के गले लगकर ट्रेन में बैठ गए| बच्चे हमेशा कि तरह खिड़की वाली सीट के पास बैठ गए| ट्रेन धीरे-धीरे करके चलने लगी और रेखा भी अपने भाई के साथ बच्चों के साथ वाली सीट पर बैठ गई|
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पूरे रास्ते चहकती हुई, अपने घर जाने का विचार उसके मन को प्रोत्साहित कर रहा था| पूरे रास्ते अपने बच्चों को बता रही थी कि हम नाना-नानी के घर जा रहे हैं, बड़ा मजा आएगा पूरे हफ्ते, सारे साल की थकान मिट जाएगी| पूरा साल जो इंतजार किया था मायके जाने का आख़िरकार वो समय आ गया था| परंतु अब यह थोड़ा सा समय निकालना रेखा के लिए बहुत मुश्किल हो रहा था| वह घड़ी की ओर देख रही थी और सोच रही थी कि ये सफर कब खत्म होगा और कब मैं अपने मम्मी-पापा से मिलूंगी|
ट्रेन में बहुत सी खाने की चीजें बिकने के लिए आ रही थी| जब बच्चों को यह सब देखकर भूख लगी तो उसने घर से बनाये हुए परांठे व सब्जी निकल ली और अख़बार लगाकर सबको आचार के साथ दे दी| सब मस्ती करते हुए खाना खाने लगे| बच्चे ट्रेन कि खिड़की से बाहर कि चीज़े देख रहे थे और मासूमियत से पूछते कि मम्मी ये ट्रेन पानी के ऊपर कैसे चलती हैं? रेखा को भी यह सब सुनकर मजा आ रहा था और वो उन्हें समझा भी रही थी|
रेखा अपने बच्चों को समझाती कि सबसे पहले जाते ही नाना-नानी को नमस्ते करनी हैं, उनका कहना मानना हैं, कोई शरारत नहीं करनी हैं| बच्चे भी अपनी मां की हां में हां मिला रहे थे| रास्ते में किसी भी स्टेशन पर ट्रेन रुकती तो रेखा बेचैन होकर अपने भाई से पूछती कि अब ओर कितनी दूर हैं| यह सब दृश्य देख कर भाई भी मुस्कुराया जा रहा था|
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जैसे तैसे करके सफर खत्म हुआ| अब रेखा का शहर आ चुका था| अब वह ओर उत्साहित हो गई थी और फटाफट ट्रेन से उतरी| उसके भाई ने घर पहुंचने के लिए रिक्शा किया और सब उसमे बैठ गए| जैसे ही घर के बाहर रिक्शा रुकी, रेखा ने झट से उतरकर घर की घंटी बजाई| सामने उसकी मां खड़ी थी और उनके चेहरे पर एक अजीब सी खुशी थी जो अपनी बेटी और नाती-नातिन को देखकर आ गई थी| नानी ने झट से दोनों बच्चों को गले से लगा लिया और खूब सारा प्यार किया| इतने में नाना जी भी आ गए, उन्होंने भी दोनों बच्चों को प्यार किया| यह सब देखकर रेखा और उसके भाई की आंखें नम हो गई| उन दोनों को अपना बचपन याद आ गया क्योंकि जब दोनों छोटे थे जब अपनी मां के साथ अपने नाना-नानी के घर जाते थे| तब वे भी उनसे ऐसे ही प्यार करते थे लेकिन अब वे नहीं रहे थे|
रेखा जल्दी से रसोई की तरफ गई और बोली कि अब मैं आ गई हूं, अब से मैं खाना बनाउंगी| उसका भाई उससे छोटा था, इस कारण उसकी अभी तक शादी नही हुई थी| जब तक रेखा कुवारी थी, खाना बनाने में अपनी माँ की मदद करती थी लेकिन उसके जाने के बाद उसकी माँ को अकेले ही सब करना पड़ता था| रेखा ने अपने भाई को छेड़ते हुए कहा कि अब तू भी जल्दी से शादी कर ले ताकि मम्मी को थोडा आराम मिले| सभी ये सुनके मुस्कुरा दिए| दोनों बच्चे तो अपने नाना-नानी की गोद में जाकर बैठ गए, जैसे कि रास्ते की सारी थकान ही भूल गए हो| यह सब देखकर रेखा बहुत खुश हो रही थी और सोच रही थी कि बिना नाना-नानी के ननिहाल ननिहाल नहीं लगता| हम सभी की कितनी यादें जुड़ी होती हैं अपने ननिहाल से| किस्मत वाले होते हैं वह लोग जिनके नसीब में नाना-नानी का प्यार होता हैं| रेखा भी अपने बच्चों को बड़ा खुशनसीब समझती हैं कि उन्हें नाना-नानी का ढेर सारा प्यार मिला|
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