कान छिदवाना हमारी हिंदू संस्कृति की एक प्राचीन परंपरा हैं। इस परंपरा का पालन हमारे देश के हर भाग में किया जाता हैं जिसका संबंध हमारे इतिहास में भी रहा हैं। हिंदू धर्म के मुताबिक कान छिदवाना (Kaan Chidwana) सोलह संस्कारों में से एक संस्कार माना जाता हैं। तो आइयें जानते हैं कान छिदवाने का सही समय, कान कैसे छिदवाते हैं और कान छिदवाने के फायदे (kaan chidwane ke fayde)।
विज्ञान के मुताबिक कान छिदवाना (Kaan Chhidwana) एक्यूपंचर थेरेपी का एक हिस्सा हैं। इसके कई फायदे होते हैं। कान के बाहरी भाग में कई ऐसे बिंदु होते हैं जिनमें कान छिदवाने से आपको चौंकाने वाले फायदे मिल सकते हैं लेकिन सटीक परिणाम के लिए सही एक्यूपंचर पॉइंट का पता होना चाहिए।
अक्सर हम लड़कियों के कान छिदवाने को लेकर असमंजस में रहते हैं कि कौन सी उम्र में और कब कान छिदवाना चाहिए। आइए आज इन सबके बारे में विस्तार (kaan chidwana in hindi) से जानते हैं।
लड़कियों के कान छिदवाने की कोई उम्र नहीं हैं। यह अपने-अपने रिवाजों और परंपराओं पर निर्भर करता है जैसे कई लोग बच्चे के जन्म के 12 या 13 दिन बाद ही उनके कान छिदवा देते हैं, ऐसा करना अनुचित हैं। कई जगह बच्ची के 1 साल से 3 साल तक की होने के बाद कान छिदवाए जाते हैं।
कई-कई जगह तो लड़का व लड़की दोनों के कान छिदवाए जाते हैं और कहीं-कहीं पर लड़के का मुंडन करवाने के साथ-साथ लड़की के कान छिदवाए जाते हैं और यह प्रयोजन बड़े धूमधाम से मनाया जाता हैं।
कान छिदवाने की सही उम्र 3 से 5 साल तक के बीच में होती हैं। ऐसा माना गया हैं कि छोटी उम्र में बच्चों की त्वचा बहुत मुलायम होती हैं जिससे कान छिदवाने में अधिक दर्द नहीं होता हैं और वही उम्र बढ़ने के साथ-साथ त्वचा भी सख्त हो जाती है जिससे बच्चे को अधिक तकलीफ होती हैं।
नोटः लड़कियों के कान 3 साल से छोटी उम्र में भी नहीं छिदवाने चाहिए क्योंकि वह बहुत छोटी होती हैं।
बच्चों के कान छिदवाने के लिए पहले आपको अपने वैद्य या त्वचा विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए। आमतौर पर हमारे देश में सुनार से कान छिदवाए जाते हैं। वैसे आजकल गन का प्रयोग करके कान छिदवाना अधिक चलन में हैं पर किसी पेशेवर की सलाह लेना एक सुरक्षित विकल्प हैं। आप कहीं भी अपने बच्चों के कान छिदवा सकती है बस कुछ आवश्यक बातों का ध्यान रखें।
#1. कान छिदवाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि कान जिस जगह पर भी छिदवाए, वह पूरी तरह से साफ हो। जिस सुई या गन से कान छेदा जा रहा है वह अच्छे से साफ किया हुआ हो व कीटाणुरहित हो ताकि बच्चों के कान में किसी प्रकार का संक्रमण ना हो।
#2. कान छिदवाने के लिए हमेशा अनुभवी व्यक्ति को ही चुने। जिससे बच्चों को कम से कम दर्द हो और कोई समस्या उत्पन्न ना हो।
#3. कान छिदवाते समय यह सुनिश्चित करें कि बच्चा शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं या नहीं। बीमारी की हालत में अगर आप कान छिदवाते हैं तो बच्चे को और अधिक परेशानी हो सकती हैं और उसे चक्कर भी आ सकते हैं।
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#4. इस दौरान बच्चे को अच्छे से पकड़े ताकि उनका सिर ना हिले और इसके साथ ही बच्चों का ध्यान भटकाने की कोशिश करें।
#5. कान छिदवाने के बाद उसमें पहनाने वाली बालियों को इन बातों को ध्यान में रखकर खरीदें जैसे कि बालियां ज्यादा बड़ी और मोतियों वाली ना हो, नहीं तो बच्चा इसे खींचकर अपने कड़े में या कपड़ों में फंसा सकता हैं। इसके अलावा यह ज्यादा टाइट ना हो क्योंकि उनमे हवा नहीं लगती हैं।
शुरुआत में बाली ही बेहतर विकल्प है क्योंकि इसे हवा भी आस-पास हो सकती है और कान को भी आसानी से साफ किया जा सकता हैं।
#6. बच्चों के कपड़े ऐसे हो जो आसानी से बदले जा सके और जो बालियों में ना फंसे। बंद कपड़ों की जगह बच्चों को बटन वाले कपड़े पहनाने पर इसमें बालियों के फंसने की संभावना कम होगी।
#7. कान छिदवाने के बाद कुछ दिन बच्चों की बहुत देखभाल करनी पड़ती हैं ताकि कान अच्छे से ठीक हो जाए और उसमें किसी तरह का संक्रमण भी ना हो।
कान छिदवाने के कई फायदे (Kaan Chhidwane ke Fayde) होते हैं जिनमें से कुछ निम्न हैं:
धार्मिक दृष्टि से देखें तो कर्णभेद सोलह संस्कारों में से नौवा संस्कार हैं। भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण का भी वैदिक रीति से कर्णभेद संस्कार हुआ था। माना जाता हैं कि इससे बुरी शक्तियों का प्रभाव कम होता है और व्यक्ति दीर्घायु होता हैं।
विज्ञान कहता हैं कि कर्णभेद से मस्तिष्क में रक्त का संचार समुचित रुप से होता हैं। इससे बौद्धिक योग्यता बढ़ती हैं व लकवा नामक रोग से भी बचाव होता हैं।
कान छिदवाने से लड़कियों के चेहरे पर कांति आती हैं और उनकी त्वचा स्वस्थ रहती हैं। चेहरे पर चमक बनी रहती हैं और सुंदरता बढ़ती हैं।
इसे उपनयन संस्कार से पहले किया जाता था ताकि गुरुकुल में जाने से पहले बच्चों की मेधा शक्ति बढ़ जाए और बच्चा बेहतर ज्ञान अर्जित कर सके। इससे आपका दिमाग तेजी से काम करता हैं और आप शिक्षा जल्दी ग्रहण कर पाते हैं।
कान को छिदवाने से आपकी आंखों की रोशनी तेज होती हैं। यह दृश्य शक्ति के विकास के लिए अच्छा होता हैं और इससे हाजमा भी बेहतर होता हैं।
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कान छिदवाने समय इतना दर्द नहीं होता हैं जितना इसके बाद में ध्यान रखना पड़ता हैं क्योंकि अगर आपने सही से इसका ध्यान नहीं रखा हैं तो कान में पस भी पड़ सकती हैं, जिसका रंग हरा या पीला हो सकता हैं। इसलिए पुराने समय से ही यह सलाह दी जाती हैं कि कान छिदवाने के बाद इसमें नीम की सीख डाल देनी चाहिए क्योंकि नीम की सीख कीटाणुओं को नष्ट करती हैं जिससे पस पड़ने का खतरा नहीं रहता हैं। इसके अलावा एक घरेलू नुस्खा हैं जिन्हें आप अपना सकती हैं। आइये जानते हैं।
चित्र स्रोत: Good Living is Glam
इस पेस्ट को बनाने के लिए हल्दी को पीस लें और उसमें नारियल तेल मिलाकर पेस्ट बना लें। अब इस पेस्ट को बच्ची के कान की तली में लगाकर सूखने दें या पेस्ट को लगा कर रुई की गोली से ढक दे।
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हल्दी एक ऐसी प्राकृतिक औषधि हैं जो एंटीबैक्टीरियल और एंटीऑक्सीडेंट का काम करती हैं जो त्वचा के किसी भी संक्रमण को ठीक करने में असरदार होती हैं। इस मसाले का कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता हैं। इसलिए यह शिशु के लिए बिल्कुल सुरक्षित हैं। यहां तक कि नारियल तेल का एंटीसेप्टिक गुण त्वचा संबंधित किसी भी समस्या में प्रभावी होता हैं। इसलिए ये दोनों चीजें मिलाकर कान छिदवाने (Ear Piercing) के बाद लगाने से संक्रमण होने का खतरा बहुत कम हो जाता हैं।
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