आजकल प्री-मैच्योर शिशुओं का पैदा होना बहुत ही सामान्य होता जा रहा है। मौजूदा आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में हर साल पैदा होने वाले 2.7 करोड़ बच्चों में से 35 लाख बच्चे प्री-मैच्योर होते हैं। प्री-मैच्योर शिशु यानी वो शिशु जिनका जन्म किन्ही कारणों से 32 सप्ताह से पहले ही हो जाता है। प्री मेच्योर बच्चों को कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं (complications of premature baby) का सामना करना पड़ सकता है।
शिशु का अधिकतर मानसिक, शारीरिक विकास अपनी माँ के गर्भ में होता है खासतौर पर अंतिम के तीन महीने शिशु के विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। लेकिन समय से पहले पैदा होने के कारण गर्भ में शिशु का पूरी तरह से विकास नहीं हो पाता।
शिशु के समय से पहले जन्म (samay se pahale janam) लेने के कई कारण हैं जैसे बदलता लाइफस्टाइल, तनाव, प्रदूषण, खानपान आदि। यही नहीं अगर प्री-मैच्योर शिशु की पूरी तरह से देखभाल न की जाए तो उसके जीवन और आने वाली जिंदगी के लिए भी यह हानिकारक हो सकता है। जानिए कौन-कौन सी समस्याएं (Problem of Premature Baby) हो सकती हैं अगर आपका बच्चा प्री-मैच्योर है तो ताकि आप सही तरीके से उनकी देखभाल कर सकें।
प्री-मैच्योर शिशु का विकास पूरी तरह से नहीं हुआ होता, इसलिए उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कमजोर होती है। ऐसे में शिशु को संक्रमण होने की संभावना भी बहुत ज्यादा हो जाती है। सर्दी-जुकाम, बुखार या कोई भी अन्य संक्रमण शिशु को जल्दी प्रभावित करते हैं।
प्री-मैच्योर शिशु का जन्म के समय काफी कम वजन होता है अर्थात ऐसे बच्चे समय पर पैदा हुए बच्चों के मुकाबले अधिक कमजोर होते हैं। ऐसे बच्चों को खास देखभाल की आवश्यकता होता है। आमतौर पर ऐसे बच्चों का वजन 2 किलोग्राम से भी कम होता है। यही नहीं प्री-मैच्योर शिशु का आकार भी अन्य बच्चों की तुलना में छोटा होता है।
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प्री-मैच्योर शिशुओं की इम्युनिटी अन्य शिशुओं के मुकाबले बहुत कमजोर होती है। जो शिशु जितनी जल्दी जन्म लेता है, उसकी समस्याएं उतनी ही अधिक होती हैं। ऐसे शिशु मौसम के बदलने से ही बहुत जल्दी प्रभावित हो जाते हैं और बीमार पड़ जाते हैं। रोग प्रतिरोधक क्षमता के कम होने के कारण यह इन्फेक्शन का भी जल्दी शिकार हो जाते हैं।
प्री- मैच्योर शिशुओं में सामान्य बच्चों के मुकाबले आँखों की समस्याएं भी अधिक देखी गयी हैं। रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी आँखों की एक ऐसी समस्या हैं जिसमें हमारी आँखों के रेटिना की नसों का पूरी तरह से विकास नहीं हो पाता, जिससे बच्चों को देखने में परेशानी होती हैं। यह परेशानी प्री- मैच्योर बच्चों में अधिक देखी गयी है।
अगर बच्चा प्री-मैच्योर हो तो ऐसे बच्चों में दिमागी समस्याएं भी बहुत अधिक देखी जाती हैं। माँ के गर्भ में शिशु का नौ महीने तक शारीरिक और मानसिक विकास होता है , अगर उसका जन्म समय से पहले हो जाता है तो इसका प्रभाव शिशु के दिमाग पर भी पड़ता है जिसके कारण उसका पूरा मानसिक विकास नहीं हो पाता हैं।
प्री-मैच्योर शिशुओं के शरीर में वसा सही तरीके से नहीं जमती हैं जिसके कारण शिशु का शरीर गर्म नहीं हो पाता और इसके कारण शिशुओं के शरीर का तापमान बहुत जल्दी कम हो जाता है। इससे उनमे हाइपोथिमिया जैसा रोग होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है। इसके कारण बच्चों को साँस लेने में भी परेशानी होती हैं।
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प्री-मैच्योर बच्चों के फेफड़े पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं। ऐसे में या तो उनके फेफड़े छोटे होते हैं या सामान्य नहीं होते जिसके कारण उन्हें साँस लेने में समस्या होती है। इसके साथ ही उन्हें फेफड़ों संबंधी गंभीर समस्याओं का भी सामना करना पड़ सकता है।
समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों के पेट की आंते भी कमजोर होती हैं। इन्हें शुरुआत में डॉक्टर की निगरानी में ही फीड कराना चाहिए।
प्री मेच्यौर बच्चों का विकास अन्य बच्चों के मुकाबले कई बार धीमा होता है। यह विकास के अहम चरण छुने में अन्य बच्चों से अधिक समय लगाते हैं जैसे चलने या बोलने में इन्हें कई बार एक साल भी लग जाता है। ऐसे बच्चों के दांत भी काफी देर से निकलते हैं।
अक्सर यह देखने में आता है कि प्री टर्म बच्चों में पीलिया की समस्या अधिक होती है। यह समय से पहले जन्म व शारीरिक विकास के पूर्ण ना होने के कारण होता है। इसलिए बच्चे को शुरुआत के कुछ दिनों तक पूर्णतः डॉक्टर की निगरानी में रखा जाता है।
प्री मेच्यौर बच्चों के लंग्स सही से विकसित नहीं हो पाते हैं। इस कारण कई बच्चों में जन्म के समय धीमी सांसों समस्या देखी जाती है। इसी कारण प्री मेच्यौर बच्चों को जन्म के कुछ दिन बाद तक बच्चों के आईसीयू में भी रखा जाता है।
ऐसा नहीं है कि अगर आपका बच्चा प्री-मैच्योर है तो वो सामान्य जीवन नहीं जी सकता और पूरी उम्र शारीरिक और मानसिक समस्यायों से जूझता रहता है। बस प्री- मैच्योर शिशु को देखभाल, प्यार के साथ-साथ भावनात्मक सहारे की आवश्यकता होती है। प्रसव के बाद ही नहीं बल्कि गर्भवती होने पर आप अपना और अपने शिशु का पूरा ध्यान रखें। ऐसा करने से शिशु का समय से पहले जन्म लेने की संभावना कम हो जाती है।
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