बच्चों को सिखाएं जाने वाले 7 मंत्र जो उनके सामाजिक विकास में भी करें मदद

बच्चों को सिखाएं जाने वाले 7 मंत्र जो उनके सामाजिक विकास में भी करें मदद

भारतीय संस्कृति के अनुसार हम कोई भी काम शुरू करें सबसे पहले हम भगवान का नाम लेते हैं वैसे भी आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में कहां किसी को इतना समय मिलता है इसलिए अगर हम बच्चों को समय रहते अपनी भारतीय संस्कृति से पहचान करवा दे तो यह सबसे बढ़िया बात है क्योंकि बचपन में सीखी हुई बात बच्चे कभी नहीं भूल पाते और उन्हें सारी उम्र यह याद रहती है 

 

यहां हम यह अवश्य बता दें कि मंत्र एक प्रार्थना का हिस्सा है। यह मंत्र बच्चों को आगे जीवन में समाज में जीने व अच्छी शिक्षा भी देते हैं। मंत्र  योग व ध्यान लगाने के लिए भी बेहतर माने जाते हैं।

आप चाहें तो खुद योगा करते हुए इन मंत्रो का जाप कर सकती हैं। और इनमें से सबसे आसान और उपयोगी है ऊं का जाप करना। तो आइयें 10 ऐसे मंत्र और उनके अर्थ को जानें जो हमें अपने बच्चों को अवश्य सिखाने चाहिए

 

बच्चों को सिखाने जाने वाले 7 मंत्र और उनके अर्थ (7 Easy Mantras You For Kids to Teach in Hindi)

#1. प्रभु वंदना

ॐ असतो मा सद्गमय।

तमसो मा ज्योतिर्गमय।

मृत्योर्मामृतं गमय ।

ॐ शान्ति शान्ति शान्तिः ॥

अर्थ: हे प्रभु! आप मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलें, अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले चले, मृत्यु से जीवंत की ओर ले चले व सभी और शांति व्याप्त हो। कहने का तात्पर्य है कि मुझे सच बोलने की शक्ति दे ताकि मैं कभी झूठ ना बोलकर हमेशा सच बोलू।

मैं निरक्षर रहकर या आधी सुनी बातों को ना सुनकर, अपने ज्ञान से चीजों को परखे। मैं मृत्यु से ना डरु व जीवंत भाव से सब काम करू। साथ ही इस मंत्र की आखिरी पंक्ति विश्व में शांति का संदेश देती है।

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#2. कल्याण वंदना

सर्वेषां स्वस्तिर्भवतु ।

सर्वेषां शान्तिर्भवतु ।

सर्वेषां पूर्नं भवतु ।

सर्वेषां मड्गलं भवतु ॥

अर्थ: हे भगवान! सबका कल्याण हो, सबके मन शांत हो, सबका भला हो, सब हर्ष और संपन्नता का अनुभव करें, किसी को दुख का सामना ना करना पड़े। अर्थात इससे हमे यह प्रेरणा मिलती है कि संसार में सभी प्राणी हमेशा खुश रहे, कोई भी दुखी ना रहे।

सभी को मन की शांति मिले व अपने आप में पूर्ण हो मतलब कोई अपने आप को छोटा या बड़ा ना समझे व सभी सबका सम्मान करे। सभी प्राणी प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़े।

 

#3. शांति मंत्र

सर्वे भवंतु सुखिनः ।

सर्वे संतु निरामया ।

सर्वे भद्राणि पश्यंतु ।

मां कश्चित् दुख भाग भवेत् ।।

अर्थ: हे भगवान! सब सुखी हों, सब निरोगी हो, अच्छे स्वास्थ्य वाले हो, सब संपन्न हो, भाग्यवान हो, कोई भी किसी प्रकार के कष्ट का अनुभव ना करें। अर्थात इसमें ईश्वर से यह प्रार्थना की गई है कि विश्व में सभी प्राणी सुखी रहे, कोई किसी रोग से पीड़ित ना हो, मतलब हम हमेशा अपने आसपास साफ सफाई का ध्यान रखे व किसी को दुःख ना पहुंचाए। इसके साथ ही हमे हमेशा सभी की भलाई का सोचना चाहिए व दूसरों की खुशी में भी खुश रहना चाहिए।

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#4. गुरु मंत्र

गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः

गुरुर्देवो महेश्वरः ।

गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म

तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

अर्थ: गुरु ही ब्रह्मा हैं, गुरु ही विष्णु है, गुरु ही महेश है व गुरु ही परम ब्रह्म है और उन गुरु को मैं प्रणाम करता हूं। अर्थात सृष्टि में गुरु को बहुत बड़ा दर्जा दिया गया है क्योंकि उन्ही से ही हमे ज्ञान की प्राप्ति होती है जो भविष्य में हमारा मार्गदर्शन करती है। गुरु अगर अच्छी शिक्षा दे तो उससे सृष्टि का सही निर्माण होता है इसलिये उन्हें ब्रह्मा की उपाधि दी गई है, गुरु के मार्गदर्शन से ही सृष्टि चलती है इसलिये उन्हें विष्णु का नाम दिया गया है।

अगर गुरु अपने गलत ज्ञान से सृष्टि का विनाश भी करवा सकते है इसलिये उन्हें महेश का नाम भी दिया गया है। गुरु से ही हमे संसार व अन्तः मन का ज्ञान होता है इसलिये उन्हें परम ब्रह्मा का नाम दिया गया है व ऐसे गुरु का हमे हमेशा सम्मान करना चाहिए।

 

#5. गायत्री मंत्र

ॐ भूर् भुवः स्वः।

तत् सवितुर्वरेण्यं।

भर्गो देवस्य धीमहि।

धियो यो नः प्रचोदयात् ॥

अर्थ: हे प्रभु! तुमने हमें उत्पन्न किया, तू ही हमारा पालन कर रहा है, हम तुमसे ही प्राण पा रहे हैं और तू ही दुखियों के कष्ट हरता है। हे प्रभु! तुम्हारा तेज सभी स्थानों पर छाया हुआ है, सृष्टि की वस्तु-वस्तु में तू ही विद्यमान है, हम सब तेरा ही ध्यान धरते हैं और तुम से ही दया मांगते हैं। हे प्रभु! तू हमारी बुद्धि को श्रेष्ठ मार्ग पर चला। हे प्रभु! तू हमेशा मुझे सुख व शांति के मार्ग पर प्रशस्त रख।

इसका मतलब हमे संसार की किसी भी वास्तु को तुच्छ नही समझना चाहिए व सभी का सरंक्षण करना चाहिए चाहे वो सजीव हो या निर्जीव क्योंकि सभी एक दूसरे पर आधारित है। संसार में हर वास्तु का अपना मूल्य है व हमे इसे ईश्वर की इच्छा समझकर आगे बढ़ना चाहिए। इसके साथ ही हमे प्रकृति का हमेशा सम्मान करना चाहिए व उसको नुकसान नही पहुँचाना चाहिए।

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#6. सरस्वती वंदना

सरस्वती नमस्तुभ्यं, वरदे कामरूपिणी ।

विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा ।।

अर्थ: हे देवी मां सरस्वती! आपको मेरा विनम्र प्रणाम है, आप वरदान देकर सबकी कामनाओं की पूर्ति करती हैं। मैं अपना अध्ययन आपकी पुजा से आरंभ करता हूं तथा सदैव सफलता की प्रार्थना करता हूं।

अर्थात हमे हमेशा विद्या का सम्मान करना चाहिए व उसका कभी अपमान नही करना चाहिए चाहे वह छोटे से छोटा ज्ञान ही क्यों ना हो। विद्या ही है जो हमें संसार रिश्तो, कर्मो इत्यादि के बारे में बताती है। विद्या को ग्रहण करके ही हम इस संसार में कुछ पा सकते है। विद्या के बिना संसार अधूरा है। इसलिये कभी भी हमे अपनी पुस्तकों का अपमान नही करना चाहिए व हमेशा उन्हें भगवान तुल्य मानना चाहिए।

 

#7. गणेश वंदना

वक्रतुंड महाकाय सूर्य कोटी समप्रभ: ।

निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ।।

अर्थ: सूंड व विशाल शरीर वाले जिसका तेज लाखों सूर्य की चमक के बराबर है। हे देव गणेश! आप कृपया करके मेरे सब कार्यों को सदैव बाधाओं और विघ्नों से मुक्त कीजिए। भगवान गणेश का नाम किसी भी शुभ काम को करने से पहले लिए जाता है अर्थात हमे हमेशा सच्चे मन से किसी कार्य की शुरुआत करनी चाहिए व हमेशा सकारात्मक रहना चाहिए।

इनसे सीख मिलती है किसी काम से सफलता मिलती है तो किसी में विफलता लेकिन हमें निराश ना होकर हमेशा आगे बढ़ता रहना चाहिए।

 

 

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