अपंगता या विकलांगता एक अभिशाप की तरह है। शारीरिक विकलांगता जीवन में कई प्रकार के कष्टों को अपकेने साथ लेकर आती है। यह मनुष्य को ना केवल शारीरिक रूप से अशक्त बना देती है अपितु यह मानसिक रूप से भी हमें पूरी तरह तोड़ देती है। अपंगता को झेलने का दर्द बड़ों से ज्यादा बच्चों को होता है। बचपन की कोमल उम्र में जीवन के इस कठोर पीड़ा को सहना थोड़ा ज्यादा मुश्किल होता है। इस उम्र में जब यह बच्चे किसी से मिलते हैं और उनके प्रति सहानुभूति या दया का भाव दिखाते हैं तो यह बातें बच्चे के मन को काफी झकझोर जाती है। आइयें जानते हैं कि हमें विकलांग बच्चों के साथ किस तरह पेश आना चाहिए (Tips to Deal with Physically Disabled Children)?
2) अपना काम करने दें (Let them do their work) विकलांग बच्चों से इस तरह से पेश आएं कि उन्हें कभी भी यह महसूस न हो कि उनमें कोई कमी है। उन्हें अपना काम स्वयं करने दें। ऐसा करने से न केवल उनका साहस बढ़ेगा बल्कि वो आत्मनिर्भर भी बनेंगे। उनसे बिना पूछें उनकी मदद करने की कोशिश न करें। जैसे अगर कोई बच्चा अच्छे से चल फिर नहीं सकता लेकिन फिर भी वो धीरे-धीरे चलने का प्रयास कर रहा है तो उनकी मदद की कोशिश न करें ऐसा करना उन्हें परेशान कर सकता है और उन्हें यह महसूस करा सकता है कि वो ऐसा करने में सक्षम नहीं हैं। 3) धैर्य (Patience) विकलांग बच्चों के साथ धैर्य और धीरज का प्रदर्शन करें। अगर बच्चा विकलांग है तो जाहिर सी बात है कि वो वह सब कुछ कर पाने में सक्षम नहीं है जो एक नार्मल बच्चा कर सकता है। अगर विकलांग बच्चा कोई काम करता है तो उसे समय लग सकता है। आपकी सलाह या दिशा-निर्देश को समझने और उनका पालन करने में उन्हें मुश्किल हो सकती है ऐसे में आपका धैर्यवान होना बेहद आवश्यक है। आपका अधीर या नाराज़ होना बच्चे को भी परेशान कर सकता है और उसके और उसकी मानसिक स्थिति के लिए खतरनाक हो सकता है। Also Read: Tips to Travel With Kids in Hindi 4) उनकी उम्र के अनुसार व्यवहार करें (Behave according to his age) विकलांग बच्चों से वैसे ही व्यवहार और बातें करें जैसे आप उसकी उम्र के अन्य बच्चों के साथ करते हैं। अगर आप बारह साल के बच्चे से बात कर रहे हैं तो उसे पांच साल के बच्चे की तरह बर्ताव न करें। आपके व्यवहार में उस बच्चे के लिए सम्मान झलकना चाहिए। अगर वो बच्चा बोल सकता है तो उसकी बातों को ध्यान से सुनें और अगर नहीं बोल सकता तो इशारों से उससे बात करें और समझें। आपका ऐसा व्यवहार बच्चे को खुश कर सकता है और बेहतर महसूस करा सकता है।
5) प्रोत्साहित करें (Encourage Him/Her) विकलांग बच्चों को भी अपना जीवन पूरी आज़ादी के साथ जीने का हक़ है। कई बार विकलांग बच्चों को बड़ों के अनुसार जीना पड़ता है जिसके कारण वो पूरी उम्र केवल अन्य व्यक्ति पर निर्भर रह जाते हैं और अपने जीवन को खुल कर नहीं जी पाते। विकलांग बच्चों को निर्णय लेने दें। उन्हें अपनी बातों को खुल कर कहने दें। वो जो भी कहते हैं उन्हें सुनें और समझें। उनको उनके शौक या रूचि के अनुसार काम करने दें और वो जो भी करना चाहे उसमे प्रोत्साहित करें। इसकी शुरुआत उन्हें विकल्प दे कर करें जैसे उन्हें कौन से कपड़े पहनने हैं या नाश्ते में क्या खाना है। उन्हें कुछ ज़िम्मेदारियाँ दें और जब वो इन जिम्मेदारियों को बखूबी पूरा करें तो उनकी प्रशंसा करें। 6) नीचा न दिखाएं (Do not show down) विकलांग बच्चों को नीचा न दिखाए। कई बार हम कुछ ऐसा कह जाते हैं जो हमें लगता है कि हम सहानुभूति प्रकट कर रहे हैं लेकिन असल में वो दूसरे को नीचा दिखाना होता है। “जैसे इस बेचारा/बेचारी का क्या कसूर था जो भगवान ने उसे ऐसे बनाया” यह वाक्य आपके लिए सहानुभूति भरा हो सकता है, लेकिन जिसके लिए इसे बोला गया है उसके लिए यह शब्द किसी तीर से कम नुकीले नहीं होंगे। याद रखें, विकलांग बच्चे उस पौधे की तरह होते हैं जिसे अगर आप पूरा सम्मान और प्यार देंगे तो वो फलेगा-फूलेगा लेकिन अगर उनसे अच्छे से न पेश आया जाए तो वो हमेशा के लिए मुरझा सकते हैं। Also Read: Tips to build a Strong Sibling Relationship एक और अहम बात, केवल विकलांग बच्चों को ही स्पोर्ट की जरूरत नहीं होती बल्कि उनके माता-पिता को भी उसी सहयोग की आवश्यकता होती है। तो अगली बार अगर आप किसी विकलांग बच्चे से मिले तो उनकी किस्मत पर रोएं ना बल्कि उनके हुनर और उनकी आत्मक्षमता की तारीख करें। क्या आप एक माँ के रूप में अन्य माताओं से शब्दों या तस्वीरों के माध्यम से अपने अनुभव बांटना चाहती हैं? अगर हाँ, तो माताओं के संयुक्त संगठन का हिस्सा बने। यहाँ क्लिक करें और हम आपसे संपर्क करेंगे।null