गर्भावस्था के दौरान अक्सर महिलाओं की इम्यूनिटी अक्सर थोड़ी कम हो जाती है। कम इम्यूनिटी का अर्थ है बीमारियों की चपेट में जल्दी आना। गर्भावस्था के दौरान होने वाले शारीरिक बदलावों के कारण भी महिलाओं को कई प्रकार की बीमारियां (Common Diseases During Pregnancy) हो जाती हैं। हालांकि अगर इनके बारें में अगर आपको पहले से पता रहेगा तो आप समय रहते इनका इलाज आसानी से कर सकती हैं।
गर्भावस्था के दौरान जटिलताओं में मां का स्वास्थ्य, भ्रूण का स्वास्थ्य या दोनों हो सकते हैं। गर्भावस्था से पहले अगर आप पूरी तरह से स्वस्थ भी रहती थी तो भी आपको कुछ जटिलताएं हो सकती हैं। हालांकि सही गर्भधारण के लिए पूरी जानकारी व देखभाल की आवश्यकता होती है लेकिन इस दौरान कई तरह की परेशानियों से बचने के लिए आपको बहुत ही सावधानी बरतनी पड़ती है। प्रसव से पहले उसकी पूरी जानकारी लेना व सभी सावधानियां बरतना ना सिर्फ गर्भावस्था में आने वाली परेशानियों को कम करता हैं बल्कि माँ और भ्रूण के स्वास्थ्य की उचित देखभाल करने में भी सहायक होता है।
गर्भावस्था की कुछ ऐसी परेशानियां हैं जो बहुत आम हैं जिनका आपको ध्यान रखने की आवश्यकता होती है। आइये इनके बारें में विस्तार से जानते हैं।
गर्भधारण के 20 सप्ताह के भीतर होने वाले गर्भपात को अचानक होने वाला गर्भपात कहा जाता है। यह गर्भपात प्राकृतिक कारणों से होता है। इसके संकेतों में योनि से रक्तस्राव का होना, ऐंठन और तरल पदार्थ या ऊतको का योनि से निकलना इत्यादि हैं।
लेकिन जरुरी नही हैं कि गर्भावस्था के दौरान योनि से होने वाले रक्तस्राव का कारण गर्भपात ही हो। कुछ महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान रक्तस्राव होता है और फिर भी उन्हें स्वस्थ गर्भावस्था होती है। लेकिन आप किसी भी प्रकार के रक्तस्राव की जाँच तुरंत अपने डॉक्टर से अवश्य करवाए। गर्भपात की पुष्टि के लिए इसका परीक्षण करवाया जाना आवश्यक है।
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यह सबसे आम गर्भावस्था की परेशानियों में से एक है और यह उन महिलाओं में हो सकता है जिन्हें पहले कभी मधुमेह नहीं था। इसलिये इसे गर्भावधि मधुमेह के नाम में जाना जाता है क्योंकि महिलाएं इसे अपनी गर्भावस्था के दौरान महसूस करती हैं। गर्भकालीन मधुमेह के कारण गर्भवती महिलाओं के खून में शर्करा का स्तर बहुत अधिक हो सकता है जिससे अजन्मे बच्चे के लिए कुछ गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। लेकिन आप अपने डॉक्टर से इसका उचित इलाज करवाकर यह सुनिश्चित कर सकती हैं कि यह आपके अजन्मे बच्चे को प्रभावित ना करे। आमतौर पर महिला के बच्चे के जन्म के बाद शुगर का स्तर कम हो जाता है।
यदि गर्भवती महिला को गर्भावस्था के 20 सप्ताह बाद भी उच्च रक्तचाप, पेशाब में प्रोटीन और लीवर या गुर्दे की असामान्यताएं हैं तो यह एक प्री-एक्लेमप्सिया की पहचान है। प्री-एक्लेमप्सिया गर्भावस्था की दूसरी तिमाही के बाद कभी भी शुरू हो सकता है। मोटापा, 35 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाएं, उच्च रक्तचाप, दो या अधिक भ्रूण का होना गर्भावस्था में प्री-एक्लेमप्सिया के एक कारण हैं।
एक पूर्ण स्वस्थ शिशु का जन्म गर्भावस्था के 36 से 38 वें सप्ताह के बीच होता है। कुछ महिलाओं को गर्भावस्था के 36 सप्ताह से पहले ही संकुचन या प्रसव पीड़ा का अनुभव होने लगता है। इसे अपरिपक्व जन्म कहा जाता है और ऐसी परिस्थितियों में पैदा होने वाले शिशुओं को समय से पहले जन्म लेने वाले शिशु या प्री मेच्योर शिशु कहा जाता है। प्रारंभिक प्रसव पीड़ा और प्रसव पूर्व जन्म स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा कर सकते हैं और अगर प्रीटरम जन्म बहुत जल्दी होता है तो यह जानलेवा भी हो सकता है। जन्म के समय बच्चा जितना परिपक्व होता है, शिशु के जीवित रहने या स्वस्थ होने की संभावना उतनी ही अधिक होती है।
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सबसे आम गर्भावस्था की परेशानियों में से एक 20 सप्ताह के बाद मृत-प्रसव का होना होता है जिसे स्टिलबर्थ के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा कोई मुख्य कारण नहीं है जिसे शोधकर्ताओं ने गर्भावस्था के अचानक नुकसान के लिए जिम्मेदार पाया है। हालांकि गुणसूत्र संबंधी असामान्यताएं, भ्रूण की खराब वृद्धि, प्लेसेंटा की समस्याएं, मां की गंभीर स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे या गंभीर संक्रमण या कोई बीमारी स्टिलबर्थ के लिए जिम्मेदार हो सकती हैं।
इस प्रकार की गर्भावस्था तब होती है जब निषेचित अंडाणु गर्भाशय के बाहर ही प्रत्यारोपित हो जाता है। यह एक बहुत खतरनाक स्थिति है और इससे तुरंत निपटा जाना चाहिए। इस तरह के गर्भधारण को तुरंत समाप्त किया जाना चाहिए क्योंकि भ्रूण को हटाने और गर्भाशय के अंदर डालने का कोई तरीका नहीं है। अधिकांश एक्टोपिक गर्भधारण फैलोपियन ट्यूब के अंदर होते हैं और इन्हें ट्यूबल गर्भधारण भी कहा जाता है। यदि समय पर इसका इलाज नहीं किया जाता है तो इस तरह की गर्भावस्था के परिणामस्वरूप फैलोपियन ट्यूब में गंभीर आंतरिक रक्तस्राव, ट्यूब क्षति और पेट में दर्द हो सकता है।
अक्सर उच्च रक्तचाप एक बहुत ही सामान्य गर्भावस्था की जटिलता है और यह प्री-एक्लेमप्सिया की स्थिति या अन्य मेडिकल स्थिति से जुड़ी हो सकती है जैसे कि अगर गर्भाधान से पहले माँ रक्तचाप की समस्याओं से ग्रस्त है। गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप से रक्त के लिए नाल तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है जो बच्चे को भोजन और ऑक्सीजन प्रदान करता है। पोषक तत्वों और ऑक्सीजन के प्रवाह में कमी, बच्चे के विकास को धीमा कर देती है और माँ को प्री-एक्लेमप्सिया के खतरे में डाल देती है।
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यह गर्भावस्था के दौरान सबसे आम जटिलताओं में से एक है। यह तब होता है जब नाल या तो गर्भाशय में असामान्य रूप से नीचे होती है या पूरे गर्भाशय की ग्रीवा को कवर कर रही होती है। सामान्य गर्भधारण में, यह गर्भाशय के ऊपर स्थित होती है और गर्भनाल के माध्यम से ही शिशु को पोषण की आपूर्ति होती है। प्रारंभिक गर्भावस्था के दिनों में प्लेसेंटा प्रीविया कोई समस्या नहीं है लेकिन जैसे-जैसे गर्भावस्था आगे बढ़ती है और प्लेसेंटा अगर असामान्य रूप से कम रहता है तो यह रक्तस्राव और समय से पहले प्रसव का कारण बन सकता है।
यह एमनियोटिक द्रव एमनियोटिक कोष को भरता है जो गर्भावस्था में बच्चे को सुरक्षा और सहारा प्रदान करता है। गर्भावस्था के 34 से 35 सप्ताह के बाद गर्भावस्था बढ़ने के साथ-साथ एमनियोटिक द्रव भी बढ़ता रहता है। यदि एमनियोटिक द्रव की मात्रा आवश्यक से कम हो तो यह गर्भावस्था की एक जटिल समस्याओं में से एक हैं। एमनियोटिक द्रव का कम स्तर पहली और दूसरी तिमाही में भ्रूण में असामान्यताएं पैदा कर सकते हैं। इसलिये जब भी आप अपने डॉक्टर के पास चेकअप के लिए जाएँ तो एमनियोटिक द्रव के स्तर की जाँच अवश्य करवाएं।
एसटीडी, यूटीआई, योनि में बैक्टीरियल संक्रमण, ग्रुप बी स्ट्रेप आदि जैसे कुछ संक्रमण गर्भावस्था या प्रसव के दौरान हो सकते हैं और यह इस दौरान जटिलताएं पैदा कर सकते हैं। वे नवजात शिशु में भी मौजूद हो सकते हैं और उसके स्वास्थ्य के लिए जोखिमभरे हो सकते हैं। गर्भावस्था के दौरान कुछ संक्रमण माँ से बच्चे को हो सकते हैं। कुछ संक्रमण स्टिलबर्थ, गर्भपात, बच्चे में दोष, बीमारी इत्यादि का कारण बन सकते हैं।
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