लोगों मानना है कि मातृत्व एक महिला को पूरी तरह से बदल सकता है हालांकि जब एक महिला के गर्भ में बच्चा पल रहा होता है तब उसके जीवन में कुछ ऐसे पल आते हैं जो अच्छे और यादगार बन जाते हैं। जब आपका बच्चा इस दुनिया में आता है तो उससे ज्यादा यादगार दिन आपके लिए कोई नहीं होगा। एक बच्चे को जन्म देना बहुत ही जटिल प्रक्रिया है परंतु साथ ही साथ यह खूबसूरत एहसास भी है। पानी में प्रसव करवाना महिलाओं में ज्यादा लोकप्रिय नहीं है परंतु यह धीरे-धीरे आजकल प्रचलन में आ रहा है। तो आइए जानते हैं कि वाटर बर्थ (Water Birth) क्या होता है।
शिशु को पानी में जन्म देना एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मां एक गर्म पानी से भरे टब में या फिर बड़ी बाल्टी में शिशु को जन्म देती है। हालांकि शिशु को पानी में जन्म देना भारत में इतना लोकप्रिय नहीं है परंतु बहुत महिलाएं इस तरीके के बारे में जानने लगी है। कुछ महिलाएं दर्द के समय पानी में रहती हैं और प्रसव के समय पानी से बाहर आ जाती है। परंतु कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं जो प्रसव के समय भी पानी में ही रहती है। शिशु को पानी में जन्म देते (pani mein delivery) समय एक डॉक्टर का उपस्थित होना जरूरी होता है।
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आप यह जरूर सोच रहे होंगे कि पानी में प्रसव के शिशु और मां को क्या फायदे होते होंगे। यह माना जाता है कि पानी में जन्म देने से शिशु को कोई परेशानी नहीं होती क्योंकि शिशु मां के गर्भ में एमनीओटिक द्रव से घिरे हुए होते हैं और यह मां के लिए भी कम तनावपूर्ण होता है। डॉक्टर या चिकित्सा विशेषज्ञों की मानें तो शिशु को पानी में जन्म देने से भ्रूण जटिलताएं और अन्य दिक्कतें कम होती है।
अमेरिकन प्रेगनेंसी एसोसिएशन के मुताबिक महिलाओं को पानी में प्रसव के बारे में बहुत कम जानकारी है परंतु आखिरी 30 सालों में कई महिलाओं ने इसे अपनाया है। रॉयल कॉलेज ऑफ ऑब्सटेट्रिशियन एंड गायनेकोलॉजिस्ट में एक लेख छापा गया था जिसमें लिखा था कि ऐसी अवस्था भी आ सकती है जिसमें पानी मां के खून में चला जाता है हालांकि यह बहुत कम होता है। इस प्रक्रिया को वाटर एंबॉलिज्म (Water Embolism) कहा जाता है।
यह भी हो सकता है कि जन्म के समय शिशु को बर्थ कैनाल में जटिलताओं का सामना करना पड़ रहा है या अगर गर्भनाल मुड़ जाए तो वह हवा के लिए हांफने लग जाता है। शिशु जब तक माँ के साथ गर्भनाल से जुड़े होते है तब तक वे उसी से साँस लेते हैं लेकिन उसके मुड़ने पर उन्हें साँस लेने में दिक्कत महसूस हो सकती है।
शिशु को एक तरह का खतरा और होता है, शिशु के जन्म के तुरंत बाद गर्भनाल टूट भी सकती है। इससे बचने के लिए जरूरी है कि शिशु को ध्यान से मां की छाती की तरफ ले जाया जाए।
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