बच्चों को सेक्स एजुकेशन देने के 5 पड़ाव

बच्चों को सेक्स एजुकेशन देने के 5 पड़ाव

आजकल भी बहुत से माता-पिता बच्चों से सेक्स एजुकेशन के बारे में बात करने में हिचकिचाते हैं और बहुत से पेरेंट्स को कई बार ये समझ ही नहीं आता कि कैसे वो बच्चों से इस बारे में बात करें। ऐसे में बहुत बार वो बच्चों से इस बारे में बात ही नहीं कर पाते जो आगे जाकर बड़ी समस्याओं की जड़ बन जाता है।

बच्चों को सेक्स एजुकेशन कैसे दें?

आजकल लोगों को लगता है कि जमाना बहुत आगे जा चुका है तो बड़े होते होते बच्चे अपने आप ही इस बारे में जान जाएंगें। पर हमेशा ध्यान रखें कि बच्चे को अच्छे बुरे की परख कहीं और से गलत तरह से मिले इससे कहीं बेहतर है कि आप सही समय पर सही जानकारी बच्चों को दें।

बच्चों को सेक्स एजुकेशन देने के तरीके को आप 5 पड़ाव में बाँट सकते हैं जो हैं-

  • 3 से 4 साल
  • 5 से 6 साल
  • 6 से 7 साल
  • प्री-टीन्स(8 से 12 साल)
  • टीन्स(12 से 19 साल)

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सेक्स एजुकेशन क्यों ज़रूरी है ?

सेक्स एजुकेशन क्यों आजकल एक जरुरत बन गया है इसके बहुत से कारण हैं। कहीं ना कहीं ये आपके बच्चे के सही तरह से विकास का हिस्सा है। बच्चों को सेक्स एजुकेशन देने की जरुरत के कुछ कारण हैं:

  • ताकि बच्चे को अपने शरीर के बारे में हर तरह की जानकारी हो , और किसी भी तरह की समस्या आने पर वो अच्छे से अपना भला बुरा समझ सके।
  • वो अपने से विपरीत लिंग के लोगों से अच्छे से और सहजता से बात कर सकें।
  • आजकल बाल शोषण और बलात्कार की घटनायें काफी बढ़ रही हैं ऐसे में बच्चों को सही समय पर ये सब बातें समझा कर आप उन्हें यौन शोषण जैसी बड़ी मुसीबतों से बचा सकते हैं।
  • बचपन से लेकर बड़े होने तक बच्चे कई तरह के मानसिक और शारीरिक बदलावों से गुजरते हैं, ऐसे में उन्हें इन सब की जानकारी रहेगी तो वो हर चीज को हेल्थी तरह से ले सकते हैं।
  • एसटीडी (STD or सेक्सुअली ट्रांसमीटेड डिसीज़) से बचाव को लेकर जागरुक हो सकें।

ध्यान रखें कि हर एक उम्र के बच्चे मानसिक विकास के आधार पर अलग अलग समय पर आप अलग तरह से उसे समझा सकते हैं ।

#1. 3 से 4 साल के बच्चे को क्या जानना जरुरी है?

आजकल बाल यौन शोषण के मामले बहुत बढ़ रहे हैं, ऐसे में माता-पिता को जल्द ही बच्चों को गुड टच, बैड टच आदि के बारे में बताना जरुरी हो गया है।3-4 साल का बच्चा अपनी चीजें पहचानना, या अपने आस पास लोगों के साथ खेलना शुरू कर देता है।

ऐसे में हम बच्चों को उनके प्राइवेट भागों के बारे में बता सकते हैं और बता सकते हैं कि कोई उसके इन अंगों को छूए या सहलाए तो ये सही नहीं है और ऐसा होने पर तुरंत घर आकर वो आपको इसकी जानकारी दें।

#2. 5 से 6 साल के बच्चे को क्या बतायें?

इस उम्र में आपको बच्चों को अपनी निजता के बारे में समझाना शुरू कर देना चाहिए, कि कैसे आपको भी उसे अपने प्राइवेट पार्ट्स नहीं दिखाने चाहिए और धीरे धीर उन्हें खुद से नहाना भी इस उम्र में सिखा दें। उन्हें बिना कपड़ों के भी ना घर में रखें।

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#3. 6 से 7 साल की उम्र की जानकारी

इस उम्र में बच्चों पर बहुत ध्यान देने की जरुरत होती है।इस उम्र तक बच्चे सब चीजें समझना शुरू कर देते हैं और उनमें चीजों को जानने की इच्छा भी बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। इस उम्र में माँ बाप को इस बात का ख़ास ख्याल रखने की जरुरत होती है कि बच्चे इस समय उनकी कही हर बात पर यकीन करते हैं तो ऐसे में कभी भी उनके सवालों को मजाक में लेने या अनदेखा करने की कोशिश ना करें।

#4. प्री टीन्स (8 से 12 साल)

इस समय में बच्चों के शरीर में मानसिक के साथ-साथ शारीरिक बदलाव भी आने लगते हैं जैसे कि लड़कियों में पीरियड्स शुरू होना, स्तनों का विकास, गुप्तांगों में आनेवाले बाल आदि. इन सब के बारे में कई बार बच्चे असहज रहते हैं और बात नहीं कर पाते तो ऐसे में आप आगे होकर उनको इसके बारे में समझाने का प्रयास करें।

इसके अलावा 12 वर्ष की उम्र के लगभग बच्चे सेक्स या बच्चे के जन्म-संबंधी बातों को समझने के लिए तैयार हो जाते हैं. उनके मन में सेक्स जैसे टॉपिक के बारे में जानने की उत्सुकता भी जागने लगती है। इस समय में उन्हें एसटीडी (सेक्सुअली ट्रांसमीटेड डिसीज़), टीन प्रेगनेंसी के नुक़सान आदि के बारे में बताएं, ताकि वो इस चीज को अच्छे से समझ सकें।

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#5. टीनेजर्स (12 से 19 साल)

इस उम्र में बच्चे थोड़े से माता-पिता से अलग रहना और दोस्तों के साथ घूमना ज्यादा पसंद करते हैं। इसलिए बहुत ज्यादा चांस रहते हैं कि दोस्तों के संपर्क में आकर युवा कुछ ना कुछ गलत हरकतें शुरू कर देते हैं। कई बार दूसरे लोगों से मिला आधा-अधूरा ज्ञान उन्हें गुमराह भी कर देता है।

दूसरे, सेक्स को लेकर इस उम्र में काफ़ी कुछ जानने की उत्सुकता भी रहती है. ऐसे में उत्तेजक जानकारियां उन्हें सेक्स के लिए उकसाने का भी काम कर सकती हैं।

अतः इस उम्र में आप उन्हें टीन प्रेगनेंसी, सेक्सुअली ट्रांसमीटेड डिसीज़, गर्भपात से होनेवाली शारीरिक-मानसिक तकलीफ़ों से अवगत कराएं, ताकि वे गुमराह होने से बच सकें। बच्चे के पहले टीचर आज भी उसके माता-पिता ही हैं और उन्हें अच्छे बुरे का ज्ञान देना उनकी ज़िम्मेदारी है। इसलिए बच्चों के हर सवाल को ध्यान से सुनकर जवाब दें ताकि आप उन्हें एक सुरक्षित भविष्य दे सकें।

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