बच्चे जैसे-जैसे बड़े होते हैं तो कई चीजों को लेकर माता-पिता को निर्णय लेना पड़ता है। उन्हीं में से एक बेहद आसान लगने वाला पर बहुत कठिन निर्णय है बच्चों को अलग कमरे में सुलाना। क्योंकि बच्चा कितना ही बड़ा हो जाए माता-पिता उसे हर समय अपनी आँखों के सामने रखना चाहते हैं ताकि उसे किसी भी तरह की तकलीफ होने पर तुरंत हल निकाला जा सके।
हमेशा ध्यान रखें कि बच्चों को अकेले सुलाने की आदत रातों रात नहीं बनती है। इसके लिए आपको कुछ समय पहले से ही कुछ तैयारियां करनी पड़ती है , कुछ बातें ध्यान में रखनी पड़ती हैं तभी बच्चा इस बदलाव के लिए खुद को तैयार कर पता है और आप भी निश्चिंत रहते हैं। ऐसे में कुछ बातें जो आपको ध्यान में रखनी चाहिए वो हैं-
सबसे पहले बच्चे का सोने और उठने का एक रूटीन बनाएं ताकि उसको सोने में किसी तरह की दिक्कत ना हो। ऐसा करने से बच्चा अलग सोने पर भी आराम से सो जाएगा और रात में उसे परेशानी नहीं होगी। वरना हो सकता है कि बच्चा रात में अकेला जागता रहे और उसे डर लगे।
बच्चे जब आपके पास सोते हैं तब से ही उन्हें अँधेरे में सोने की आदत डालें, ताकि बाद में अकेले सोते हुए उन्हें डर ना लगे। बच्चे को अगर अँधेरे में डर लगे तो थोड़ा समय उसके साथ बिताए और उसे उसकी पसंद की सकारात्मक कहानियां सुनाएं। ऐसा करने से धीरे-धीरे बच्चे की आदत का विकास होगा।
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शुरू शुरू में अगर बच्चा लंबे समय थक आपके पास सो रहा है तो अचानक से उसे खुद से अलग ना सुलाएँ, अगर संभव है तो अपने ही कमरे में उसके लिए छोटा बिस्तर जैसे सोफ़ा-कम- बिस्तर लगा कर सुलाएँ ताकि उसमें धीरे-धीरे आदत का विकास हो जाए।
बच्चा जब भी अकेला सोना शुरू करें तो ध्यान रखें कि उसको हमेशा सुरक्षा का एहसास हो, उसको यह बात बताएं कि आप उससे ज्यादा दूर नहीं है और किसी भी तरह की परेशानी होने पर आप उसके पास पहुंच जाएंगें। साथ ही कभी भी बच्चे के डरने पर उसे डांटे नहीं ऐसा करना उसे मानसिक रूप से कमजोर बना सकता है।
बच्चे के अलग कमरे में कभी भी टीवी आदि ना रखें, इससे उसकी नींद का रूटीन कभी भी नहीं बन पाएगा और उसे क्वालिटी नींद नहीं मिल पाती है।
बच्चे को जिस तरह से पसंद हो उसकी पसंद के अनुसार कमरा सजाने की कोशिश करें, उसे ये एहसास दिलाएं कि ये उसी का कमरा है। ऐसा करने से बच्चा खुशी खुशी अपने कमरे में सोने की जिद्द करेगा।
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बच्चों को अकेला सुलाने की सही उम्र क्या है?
इन सब के साथ ही हर किसी का सवाल होता है कि किस उम्र में बच्चों को अलग सुलाना सही है। इस सवाल का जवाब हर माता-पिता और बच्चे के हिसाब से अलग अलग हो सकता है।
पर सामान्य तौर पर 5 से से बड़े बच्चे को अलग सुलाना जरुरी है। बहुत छोटे बच्चे को कई बार अलग सुलाने से उसे बार बार चेक करना मुश्किल हो जाता है और बिस्तर आदि का गीला होने का भी पता नहीं चल पाता। इसलिए एक बार बच्चे का टॉयलेट रूटीन बनने के बाद अगर बच्चे सहज है तो उसे अलग सुलाना शुरू कर दें।
ऐसा करने से बच्चे को खुद को सँभालने की आदत पड़ जाती है, कहीं बाहर जाने की स्थिति में भी वो अलग जगह डरते नहीं है। बहुत ज्यादा माता-पिता के पास सोने से बच्चे में आत्मविश्वास की कमी हो जाती है।
एक समय के बाद बच्चों को भी अपने तरह से अपना रूटीन बनाना जरुरी है। अगर बच्चे लंबे समय तक बड़ों के साथ सोते हैं तो उन्हें आगे चलकर परेशानी होती है।
कई बार माता-पिता बनने के बाद जिंदगी बच्चे के ही इर्द गिर्द घुमती रहती है, ऐसे में बच्चे को अलग सोने से उसे भी वक्त मिलता है और आप अपने जीवनसाथी को भी वक्त दे सकते हैं।
इस तरह से आप बच्चों को सही समय पर अलग से सुलाने के लिए तैयार कर सकती है। ध्यान रहे कि शुरू में आपको और बच्चे दोनों को इस बदलाव से परेशानी हो सकती है पर आगे चलकर यह दोनों के लिए ही एक बेहतर कदम है।
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