बच्चों के घुटनों के बल चलने के 7 मुख्य फायदें

बच्चों के घुटनों के बल चलने के 7 मुख्य फायदें

आपके मन में यह सवाल आया होगा कि क्या शिशु का घुटनों के बल चलने में कोई फायदा है? पैरों पर चलने से पहले, बच्चों का घुटनों के बल चलना (ghutne ke bal chalna) एक प्राकृतिक नियम है क्योंकि इससे शिशु के शरीर को अनेक प्रकार के स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं जो उनके शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक विकास के लिए बहुत जरूरी है।

इससे पहले कि बच्चे पैरों के बल चलना सीखे, वह घुटनों के बल चलना सीखते हैं। बच्चों को घुटनों के बल चलता देख मां-बाप को बहुत खुशी मिलती है। एक बार जब बच्चे घुटनों के बल चलना शुरू कर देते हैं तो घर के सदस्यों के लिए यह बड़ा भाग-दौड़ का समय होता है। पूरा घर बच्चे की किलकारियों से भर जाता है।

सच बात तो यह है कि जब बच्चा घुटनों के बल चलते हैं तो एक प्रकार से उनके शरीर का व्यायाम होता है। उनके पैरों में ताकत आती है और खड़े होकर चलने की क्षमता विकसित होती है। लेकिन कई बार ऐसे बच्चे भी देखने को मिलते हैं जो घुटने के बल चलने की बजाये सीधा चलना शुरू कर देते हैं। ऐसे में हम कई बार यह सोचने में मजबूर होते हैं कि क्या बच्चों का घुटनों के बल चलना जरूरी होता है? इसलिये बच्चों का घुटनों के बल चलने के विषय पर आज हम विस्तार से चर्चा करेंगे और उसके फायदे (Benefits of Crawling in Hindi) जानेंगे।

 

बच्चों का घुटनों के बल चलने के फायदें (Bachho ke Ghutne ke Bal Chalne ke Fayde)

#1. शारीरिक विकास 

जब बच्चे घुटनों के बल चलते हैं तो पैरों के साथ हाथों का भी इस्तेमाल होता है। इस तरह शिशु के हाथ और पैर दोनों की हड्डियां और मांसपेशियां मजबूत होती हैं। साथ ही उनका शरीर लचीला होता है। जब वे अपने घुटनों के बल चलते हैं तो उनका पैर शरीर को मोड़ना, घुमाना, चलने और दौड़ने जैसी जरूरी प्रक्रियाओ को समझता है और सीखता है।

शिशु जब घुटनों के बल चलना शुरु करते हैं तो उनके शरीर को प्रोटीन और कैल्शियम युक्त आहार की जरूरत पड़ती है। अगर इस समय आप शिशु के आहार में ऐसे भोजन को सम्मिलित करें जिसमें प्रचूर मात्रा में प्रोटीन और कैल्शियम हो तो उनकी हड्डियां मजबूत बनेंगी व मांसपेशियों का तेजी से विकास होगा।

#2. संतुलन बनाना सीखता हैं

शिशु के अच्छे मानसिक विकास के लिए जरूरी है कि वह खुद चीजों को करके सीखे। इसी के अंतर्गत प्रकृति ने शिशु के घुटनों के बल चलने का नियम निर्धारित किया है। वरना इस संसार में कुछ जीव ऐसे भी है जो जन्म लेते ही कूदना शुरू कर देते हैं। उदाहरण के लिए बकरी, हिरण, गाय आदि। शिशु पैरों के बल चलता है तो उसमें गति के नियमों को समझने की क्षमता बढ़ती है। इससे वह समाज में संतुलन बनाना भी सीखना है।

#3. दृष्टि और सामंजस्य की क्षमता का विकास

घुटनों के बल चलते वक्त जब शिशु एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाता है तो उसमें आंखों और दृष्टि के नियमों की समझ बढ़ती है। इसके साथ ही उसकी दृष्टि की क्षमता का विकास होता है। इससे पहले नवजात अवस्था में जब शिशु केवल गोद में रहता था तो वह केवल अपने आसपास की वस्तुओं को दूर से देखता था लेकिन घुटनों के बल चलने के दौरान उसमें आसपास और दूरी की समझ का विकास बढ़ता है। इस समझ के आधार पर वह यह निर्णय करना सीखते हैं कि किस गति से कहां पहुंचना है जिससे कि शरीर को नुकसान ना पहुंचे और दूरी के आधार पर एक स्थान से दूसरे स्थान पहुंचने में कितना समय लगेगा।

 

#4. मस्तिष्क का विकास

यह शिशु का एक महत्वपूर्ण पड़ाव होता है जब शिशु का दाया और बाया मस्तिष्क आपस में सामंजस्य स्थापित करना सीखता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस समय शिशु एक साथ कई काम कर रहा होता है जिससे उसके दिमाग के अलग-अलग हिस्सों का इस्तेमाल हो रहा होता है। उदाहरण के लिए जब शिशु घुटनों के बल चलता है तो वह अपने हाथ व पैर दोनो का इस्तेमाल करता है तथा तापमान, दूरी, गहराई जैसे ना जाने अनेक चीजों को वह अपने से महसूस करना सीखता है। इस समय शिशु के दिमाग का विकास अपने चरम पर होता है।

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#5. आत्मविश्वास को बढ़ाता है

घुटनों के बल चलने से शिशु के आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होती है क्योंकि वह अपनी जिंदगी के बहुत से दैनिक फैसले खुद लेना शुरू करता है। उदाहरण के लिए दूरी या गहराई के आधार पर वह यह निर्णय लेना शुरू करता है कि उसे किस दिशा में घुटनों के बल आगे बढ़ना है और कब उठना है। इस तरह समय से निर्णय लेने में उसमें आत्मविश्वास के साथ-साथ सोचने और विचार करने की क्षमता का भी विकास होता है।

 

#6. चीजों की समझ बढ़ती है

घुटनों के बल चलने के दौरान कई बार बच्चों को चोट भी लग सकती है। जिंदगी की इस प्रकार के छोटे-छोटे रिस्क लेकर आगे चलकर बड़ा जोखिम लेने का साहस पैदा करते हैं और साथ ही असफल होने पर उसके अंदर पुनः प्रयास करने की समझ विकसित होती है। यह समय और आत्मविश्वास दोनों आगे चलकर शिशु को पैरों के बल चलने में मदद करते हैं।

 

#7. शारीरिक मजबूती 

बच्चा जब घुटनों के बल चलता है तो उसके घुटनों व हाथों की मजबूती बढ़ती है। घुटनों के बल चलने से बच्चे का सारा भार हाथों व पांवों पर आता है। जब एक बच्चा खुद को फर्नीचर पर खींचना शुरू करता है या खड़ा होता है, तो उसकी रीढ़ में सामान्य वक्र विकसित होने लगते हैं और उनकी पीठ के निचले हिस्से और पैरों की मांसपेशियां मजबूत होने लगती हैं। बच्चा जितना अधिक घुटनों के बल चलना है, उतना अधिक वह अपने पांवों पर चलने के लिए तैयार होता है।

 

(यह जानकारी प्रेगा न्यूज द्वारा प्रायोजित है।)

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