शिशु के जन्म लेते ही घर के लोग उसकी शक्ल और रंग की तुलना उसकी माँ, पिता या अन्य करीबी से करने लगते हैं। लेकिन सच यह है कि जन्म के बाद से ही शिशु के रंग और शक्ल दोनों में बदलाव आना शुरू हो जाता है। छोटे बच्चे की एक मुस्कराहट, छोटे हाथ-पैर और चब्बी चीक्स किसी का भी दिल जीत लेते हैं। बच्चों का मासूम चेहरा बड़े से बड़े दुःख को भुला देता है। जन्म के बाद शिशु में बहुत परिवर्तन आते है फिर चाहे वो नैन-नक्श हों या रंग। शिशु का रंग (Bachhe ka Rang) भी जन्म के बाद एक जैसा नहीं रहता बल्कि उसमे लगातार बदलाव होता रहता है जैसे पहले गहरा लाल, लाल, गुलाबी, नीला आदि। कई शिशु जन्म के बाद गोरे होते हैं लेकिन समय के साथ उनका रंग सांवला होता जाता है या इससे विपरीत भी हो सकता है। ऐसा क्यों होता है इसके पीछे भी कई कारण है। आइये जाने कि जन्म के बाद आखिर कैसे बदलता है बच्चे का रंग (How Baby Skin Color Change After Birth )।
जन्म के बाद आखिर कैसे बदलता है बच्चे का रंग (How does the baby skin color change after birth in hindi)
#1. जन्म के समय (At the time of birth)
जब बच्चा जन्म लेता है तब उसकी त्वचा का रंग गहरे लाल से लेकर जामुनी या गुलाबी हो सकता है। लगभग सभी बच्चों का रंग ऐसा ही होता है। लेकिन जैसे ही माँ के गर्भ से बाहर आकर बच्चा हवा में साँस लेता है तो उसकी त्वचा का रंग बदलना शुरू हो जाता है। यह रंग बदल कर लाल हो जाता है। हालाँकि कुछ ही दिनों में यह रंग एक बार फिर से बदल सकता है।
बच्चों के शरीर का रंग शुरुआती दिनों में गुलाबी या हल्का लाल होता है जो धीरे धीरे गहरे लाल रंग में भी बदल जाता है जो शरीर में रक्त संचार की प्रक्रिया के शुरु होने का संकेत होता है।
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जब शिशु बहुत अधिक रोता है तो उसका चेहरा और होंठ नीले या जामुनी हो जाते हैं हालाँकि शिशु के चुप होने पर इनका रंग फिर से गुलाबी हो जाता है। अगर आपके बच्चे का रंग गुलाबी नहीं हैं बल्कि नीला है तो डॉक्टर से मिले क्योंकि यह किसी स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या की तरफ इशारा हो सकता है। शिशु के चेहरे या अन्य अंगों का नीला होना कयनोसिस कहलाता है और यह शिशु के दिल में समस्या का संकेत है क्योंकि उसका दिल सही से रक्त को उसके शरीर तक नहीं पहुंचा रहा है।
#2. दो या तीन दिन बाद (After two or three days)
शिशु के जन्म के दो या तीन दिन बाद उसका रंग गुलाबी हो जाता है और इसका कारण है रक्त वाहिकाएं या ब्लड सर्कुलेशन। कुछ बच्चों के हाथ- पैर कुछ समय तक जामुनी या नीले हो सकते हैं और इसका कारण है, उनमें रक्त संचार प्रणाली जो विकसित नहीं हुई होती हैं।
#3. दो या तीन महीने बाद (After two or three Months)
शिशु के जन्म के दो या तीन महीने बाद उसका असली रंग सामने आता है यानी गोरा या सांवला। यह रंग पूरी तरह से जीन्स (Genes) पर निर्भर करता है और इस पर किसी अन्य चीज़ का नियंत्रण नहीं होता हैं।
#4. पीला रंग(Yellow Color)
न्यूबॉर्न बेबी का कलर शुरुआत में पीला होता है, ऐसा पीलिया (Jaundice) के कारण भी हो सकता है। ऐसा होना शिशु के जन्म के बाद सामान्य होता है। अगर एक से दो सप्ताह बाद भी बच्चे के शरीर पर पीले दाग या उसकी आंखों में पीलापन नजर आएं तो डॉक्टर की तुरंत सलाह लें। पीलिया होने पर शिशु का माथा, छाती और आँखों का रंग पीला पड़ जाता है। जैसे -जैसे शिशु का लिवर विकसित होता है, वैसे ही शिशु में पीलिया ठीक हो जाता है। समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों में यह संभावना अधिक होती है। शिशु में पीलिया भी कई तरह का होता है और उसका इलाज भी उसी प्रकार से किया जाता है।
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#5. बर्थमार्क (Birthmark)
इसके साथ ही अगर शिशु के आँखों, माथे या गर्दन के पास हल्के लाल रंग के धब्बे हों तो ऐसा होना भी आम है क्योंकि समय के साथ यह गायब या हल्के हो जाते हैं। यह बर्थमार्क हो सकते हैं जो अलग-अलग रंग, शेप और आकर के हो सकते हैं। लेकिन अगर आपको कुछ गंभीर लग रहा हो तो डॉक्टर की सलाह लेना न भूलें।
#6. रैशेज (Rashes)
नवजात शिशु को रैशेज होने का खतरा अधिक होता है विशेष छाती व गर्दन पर। इस दौरान उनके गर्दन व छाती का रंग आपको लाल या दानों से भरा लग सकता है। यह दाने कई बार जल्दी समाप्त हो जाते हैं तो कई बार एकाध महीने तक कायम रहते हैं।
#7. प्री मेच्योर बच्चों की स्किन (Premature Baby Skin Color)
समय से पहले जन्मे बच्चे या प्री मेच्योर (
Premature) बच्चों की त्वचा पतली और पारदर्शी होती है और हो सकता है यह लेनुगो (Lungo) यानि कि पतले एवं रोमिल बालों से ढकी हो। जन्म के समय उनके शरीर पर वर्निक्स भी हो सकता है। वर्निक्स एक चिपचिपा सफेद पदार्थ होता है, जो शिशु की त्वचा को एमनियोटिक द्रव से सुरक्षित रखता है।
बच्चों का रंग ज्यादा सांवला होने के कारण
माना जाता है कि अगर आप बच्चे को ज्यादा देर तक धूप में रखें तो उसका रंग सांवला हो सकता है। अगर बच्चे को पीलिया है तो आप उसे डॉक्टर की सलाह पर सुबह 10 से 15 मिनट तक धूप में रख सकते हैं। यह पीलिया के उपचार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और शिशु की रंगत की चिंता में ऐसा न करना सही नहीं है। धूप की वजह से शिशु की रंगत में आने वाला बदलाव अस्थाई होता है। लेकिन कई बार लोग नवजात शिशु को धूप में लेजाकर तेल लगाकर लेटा देते हैं जो गलत है। इससे बचना चाहिए। याद रखें कि नवजात शिशु को केवल सुबह की गुनगुनी धूप ही दिखानी चाहिए।
अगर शिशु के माता-पिता का रंग गोरा है तो इस बात की संभावना अधिक होती है कि शिशु का रंग भी गोरा हो। वहीं अगर माता-पिता का रंग सांवला है तो बच्चों के सांवले रंग के होने की संभावना अधिक होती है। इसके अलावा सूरज की रोशनी का प्रभाव भी शिशु के रंग पर पड़ता है। अगर शिशु नियमित रूप से धूप में रहता है तब भी त्वचा का रंग गहरा हो सकता है। ऐसा माना जाता है कि शिशु की मालिश करने, उसकी त्वचा पर कुछ खास क्रीम लगाने या गर्भावस्था के समय कुछ खास चीज़ों को खाने से बच्चे का रंग साफ होता है लेकिन ऐसा सच नहीं है। शिशु का रंग गोरा होगा या सांवला होना, केवल आनुवंशिक कारणों पर निर्भर होता है।
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