बचपन जिंदगी का बहुत खूबसूरत सफर होता हैं| बचपन में ना तो कोई चिंता होती है और ना कोई फिक्र| एक निश्चिंत जीवन का भरपूर आनंद लेना ही बचपन होता हैं लेकिन कुछ बच्चों के बचपन में लाचारी और गरीबी की नजर लग जाती हैं जिस कारण उन्हें बाल श्रम जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता हैं| बाल श्रम वर्तमान समय में बच्चों की मासूमियत के बीच अभिशाप बन कर सामने आता हैं|
भारतीय संविधान के अनुसार, 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से कारखानों, दुकान, रेस्तरां, होटल, कोयला खदान, पटाखे के कारखाने, आदि जगह पर कार्य करवाना बालश्रम हैं| बाल श्रम में बच्चों का शोषण भी शामिल होता हैं| शोषण मतलब बच्चों से ऐसे कार्य करवाना जिनके लिए वे मानसिक एवं शारीरिक रूप से तैयार ना हो| कई बच्चे तो ऐसी जगह के पास काम करते हैं जो 1200 डिग्री सेल्सियस ताप पर जलती हैं| वे आर्सेनिक और पोटेशियम जैसे खतरनाक रसायनों को काम में लेते हैं| वे कांच धमन की इकाइयों में काम करते हैं जहां उनके फेफड़ों पर जोर पड़ता हैं जिससे तपेदिक जैसी बीमारियां होती हैं| परंतु तब भी अपने मालिकों के आदेश पर उन्हें 12 से 15 घंटे लगातार काम करना पड़ता हैं| कूड़े के ढेर में से रिसाइकिलिंग के लिए विभिन्न सामग्री इकट्ठा करने वाले बच्चों में समय से पूर्व भी कई खतरनाक और संक्रामक बीमारियां घर कर जाती हैं जिससे बचपन और जवानी के होने का पता ही नहीं चल पाता और उनके कदम सीधे बुढ़ापे की ओर चले जाते हैं|
#1. यूनिसेफ व अन्तराष्ट्रीय मजदूर संगठन के अनुसार, 5-17 साल की उम्र के बाल मजदूरों की संख्या संपूर्ण विश्व में 16.8 करोड़ हैं जिनमे से करीब आधे बच्चे तो खतरनाक जगहों पर काम करते हैं|
#2. सबसे ज्यादा बाल मजदूर अफ्रीका महाद्वीप में हैं|
#3. करीब-करीब 60% बच्चे खेतो में बाल मजदूरी करते हैं जैसे कि कॉफ़ी, रबर, रूई, कपास, इत्यादि|
#4. यह जानकर भी आपको आश्चर्य होगा कि 5 में से सिर्फ 1 बच्चे को उसके काम की कीमत मिल पाती हैं|
#5. हर साल करीब 22 हज़ार बच्चे काम करते समय किसी हादसे का शिकार होकर मर जाते हैं|
भारत में सबसे ज्यादा बाल मजदूरी वाले 5 राज्य हैं: उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र| इन 5 राज्यों में भारत के कुल आधे बाल मजदूर काम करते हैं|
भारत में बाल श्रम के प्रमुख कारणों में निर्धनता, अशिक्षा, बेरोजगारी, कमाई की प्राप्ति आदि हैं| जहां 40% से अधिक लोग गरीबी से जूझ रहे हैं ऐसी स्थिति में बच्चे बाल श्रम करके अपना व अपने माता-पिता का पेट भरते हैं| उनकी कमाई के बिना उनके परिवार का जीवन-स्तर और गिर सकता हैं| हमारे देश की बढ़ती जनसंख्या भी इसका एक प्रमुख कारण हैं|
भारत की ज्यादातर आबादी गरीबी से पीड़ित हैं| कुछ परिवारों में भरपेट खाना तक सपना सा है| गरीबी में इन पीड़ितों को कई बार अपनों को खोने के गम से भी अवगत करवाया हैं| बस इसी गरीबी के कारण कई बच्चे अपने बाल्यकाल को त्यागकर मजदूरी के लिए निकल पड़ते हैं ताकि अपने परिवार का पेट पाल सके लेकिन कभी-कभी यह निर्णय बच्चों की शारीरिक व मानसिक अवस्था को झकझोर देते हैं|
हमारे देश में आजादी के इतने सालों बाद भी कुछ इलाके ऐसे हैं जहां शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है और अगर है तो कोसों दूर| प्रशासनिक ढीलापन भी इसके लिए जिम्मेदार है| शिक्षा की कमी होना, बच्चो को बाल मजदूरी की खाई में धकेल देती हैं|
चौंकाने वाला मगर कड़वा सच यह भी है कि कई परिवारों में बाल श्रम को परंपरा या रीति का नाम देकर, इसको बड़ी आसानी से अंजाम दिया जाता हैं| कई परिवारों का यह मानना है कि उनके नसीब में अच्छी जिंदगी कभी लिखी ही नहीं गई और वर्षों से चली आ रही मजदूरी की परंपरा ही उनकी कमाई ही जीवन व्यतीत करने का एकमात्र स्त्रोत हैं|
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दुकानदार और छोटे व्यापारी भी बच्चों से काम तो बड़ों के जितना ही करवाते हैं लेकिन उन्हें दाम आधा देते हैं| आपको होटलों, ढाबो, कचरा उठाते जैसी जगहों पर आसानी से बच्चे काम करते दिख जायेंगे क्योंकि जो लोग उनसे काम करवाते हैं वे या तो उन्हें कुछ नही देते या फिर बहुत कम देते हैं|
हमारे देश की लगातार बढती जनसँख्या भी इसका एक प्रमुख कारण हैं जिसके कारण बेरोजगारी तो बढती ही हैं व बाल मजदूरी भी| माँ-बाप बिना सोचे-समझे ज्यादा बच्चे करते हैं लेकिन उन्हें पालने के लिए उनके पास इतने संसाधन नही होते जिस कारण बच्चे छोटी उम्र में ही काम करने पर मजबूर हो जाते हैं|
बाल श्रम एक ऐसा अभिशाप है जिससे बच्चे की पूरी जिंदगी खराब हो जाती हैं| बाल-मजदूरी किसी भी देश की तरक्की में एक बहुत बड़ी रुकावट है इसी कारण आज कई देश विकसित नहीं हो पा रहे हैं| बच्चे ही भविष्य को और बेहतर और नई ऊंचाइयों पर लेकर जाएंगे और यही बच्चे अगर छोटी उम्र में शिक्षा की बजाए लोगों के घरों और दुकानों में काम करने लगेंगे तो देश कैसे उन्नति करेगा? आइये जानते हैं, बाल श्रम के दुष्प्रभाव:
बाल श्रम का सबसे ज्यादा असर बच्चों के विकास पर होता हैं| बाल मजदूरी से बच्चों का शारीरिक एवं मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता हैं| जिस उम्र में बच्चों को खेलने-कूदने के अलावा शिक्षा लेकर अपना विकास करना चाहिए, उस उम्र में उन्हें मजदूरी करनी पड़ती हैं|
बाल मजदूरों का उनके मालिकों द्वारा ज्यादा शोषण किया जाता हैं| बाल मजदूर कम मजदूरी लेकर ज्यादा काम करने के लिए राजी हो जाते हैं एवं उनसे मनचाहा काम भी करवा लिया जाता हैं|
गरीबी के कारण बच्चे बाल मजदूरी करने पर मजबूर हो जाते हैं और उनके जीवन में शिक्षा का अभाव बना रहता हैं| जो कि एक देश की उन्नति में बहुत बड़ी बाधा हैं|
कारखानों, कोयले की खदानों, पटाखों की फैक्ट्री आदि में कार्य करने से बच्चो की जान को खतरा ज्यादा रहता हैं| सरकार ने इसके लिए कानून भी बनाया है जिसमें 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से कारखानों और खदान में काम करवाना अपराध हैं|
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बाल श्रम पर कानून के अनुसार, किसी भी काम के लिए 14 साल से कम उम्र के बच्चे को नियुक्त करने वाले व्यक्ति को दो साल तक की कैद की सजा तथा उस पर 50,000 रुपये का अधिकतम जुर्माना लगेगा| हालांकि, स्कूल से बाद के समय में अपने परिवार की मदद करने वाले बच्चे को इस कानून के दायरे में नहीं रखा गया हैं| यह कानून 14 से 18 साल की उम्र के किशोर को खानों और अन्य ज्वलनशील पदार्थ या विस्फोटकों जैसे जोखिम वाले कार्यों में रोजगार पर पाबंदी लगाता हैं| हालांकि, यह कानून फिल्मों, विज्ञापनों या टीवी उद्योग में बच्चों के काम पर लागू नहीं होता हैं| यह कानून सरकार को ऐसे स्थानों पर और जोखिम भरे कार्यों वाले स्थानों पर समय-समय पर निरीक्षण करने का अधिकार देता है जहां बच्चों के रोजगार पर पाबंदी हैं| इन सबके बावजूद भी हमारे देश में बाल श्रमिकों की संख्या आज भी करोड़ों में हैं|
हम हमेशा यह सोचते हैं कि इस तरह की समाज की कुरीतियों को समाप्त करने का दायित्व सिर्फ सरकार का हैं| कानूनों का उल्लंघन करने वालों को सजा देने में सुधार आ जाएगा लेकिन यह असंभव हैं| बहुत बच्चे आपको लोगो के घरों में, होटलों में काम करते मिल जाएंगे जो कड़ाके की ठंड या तपती धूप की परवाह किए बगैर काम करते हैं| सभ्य होते समाज में यह अभिशाप आज भी क्यों बरकरार हैं? क्यों तथाकथित सभ्य शिक्षित परिवारों में नौकर के रूप में छोटे बच्चों को पसंद किया जाता हैं? हमें इन प्रश्नों का उत्तर स्वयं से पूछना होगा क्योंकि सरकार के साथ-साथ कुछ जिम्मेदारी हमारी भी बनती हैं|
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