जिंदगी में कई चीजें ऐसी होती हैं जो हमें पता होती हैं कि यह गलत है फिर भी हमें करनी पडती हैं। कुछ ऐसे ही फैसलों में से एक है गर्भपात कराना (Garbhpaat)। किसी भी स्त्री के लिए यह सबसे मुश्किल निर्णयों में से एक होता है। यह ना सिर्फ मानसिक बल्कि शारीरिक स्तर पर भी कष्टदायक होता है। गर्भपात कराना या ना करना यह स्वविवेक और परिस्थितियों पर निर्भर करता है। लेकिन अबॉर्शन (Abortion) कराने से पहले हमें इसे जुड़े घातक परिणाम, कानून और सभी मुश्किलों का पता होना आवश्यक है।
स्त्रियों में अबॉर्शन से जुडे पहलुओं के प्रति जागरुक बनाने के लिए हर साल 28 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय सुरक्षित गर्भपात दिवस मनाया जाता है। अगर आप भी गर्भपात के बारें में किसी बात से अनभिज्ञ हैं या आप भारतीय अबॉर्शन कानून के बारें में नहीं जानती हैं तो आपकी सभी समस्याओं का समाधान है यह लेख (Abortion Facts)।
आइयें जानें कि भारत में अबॉर्शन (Garbhpaat ke Kanoon) को लेकर क्या कानून है, किस स्टेज तक आप मेडिकली गर्भपात करा सकती हैं?
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भारतीय गर्भपात कानून, एमटीपी एक्ट (MTP Act) के अनुसार 24 सप्ताह तक के भ्रूण यानि लगभग चार महीने तक के भ्रूण को विशेष परिस्थितियों में मेडिक्ली अबोर्ट कराया जा सकता है। यहां निम्न बातों का अवश्य ध्यान रखेंः
भारत जैसे देश में गर्भपात को सामाजिक स्तर पर बुरा माना जाता है। अक्सर परिवार के सदस्य इसके लिए काफी दबाव डालते हैं। अगर आप कानूनी रूप से व्यस्क हैं तो आपको अपने परिवार में से किसी से भी गर्भपात कराने के लिए इजाजत लेने की आवश्यकता नहीं है।
एमटीपी एक्ट (MTP Act) के अनुसार गर्भ को रखना या ना रखना पूरी तरह से मां का अधिकार है। हालांकि जागरुकता की कमी के कारण महिलाएं इस निजी फैसले के लिए अपने अधिकारों से वंचित रहती हैं। याद रखें कि एक निश्चित समय सीमा तक एक महिला को ना ही कोई गर्भपात कराने के लिए दबाव डाल सकता है और ना ही कोई उसे ऐसा करने से रोक सकता है।
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एमटीपी एक्ट के अनुसार अगर लड़की 18 साल से बड़ी है तो वह लिखित में अपनी रजामंदी देकर गर्भपात करा सकती है। इसके लिए माता-पिता की रजामंदी होना जरूरी नहीं है। लेकिन 18 से कम आयु होने पर गर्भपात की अनुमति केवल माता-पिता ही दे सकते हैं। रेप या मानसिक अपंगता की स्थिति में भी माता-पिता की लिखित अनुमति का होना जरूरी है।
तो चलिए जानते है एबॉर्शन कैसे होता हैं (abortion kaise hota hai) और गर्भपात के तरीकेः
मेडिकल अबॉर्शन (Abortion with Pills): अगर भ्रूण सात सप्ताह से कम है तो गर्भवती महिला प्रशिक्षित डॉक्टर की देख-रेख में दवाइयों का सेवन कर गर्भपात करा सकती है। यह एक नॉन-सर्जिक्ल तरीका है यानि इसमें किसी टांके या काटने आदि की जरूरत नहीं होती लेकिन यह पूर्णतः डॉक्टर की निगरानी में होना चाहिए।
ऐसे कई केस आते हैं जहां इस दौरान अधिक ब्लीडिंग होने से मौत भी हो जाती है। इस स्टेज में गर्भपात कराने पर दोबार गर्भधारण करने में अमूमन समस्या नहीं आती है।
सर्जिक्ल अबॉर्शन (Surgical Abortion): सात सप्ताह से अधिक के भ्रूण का गर्भपात कराने के लिए सर्जिक्ल तरीका इस्तेमाल किया जाता है। इसके लिए भी डॉक्टर की निगरानी परमावश्यक है।
सर्जिक्ल अबॉर्शन के बाद दोबारा गर्भधारण करने में अक्सर समस्याएं आती हैं। इसलिए इसे कराने से पहले भविष्य की सभी सन्भावनाओं पर पूर्णतः विचार कर लें।
अगर आप बच्चा नहीं चाहती है तो आप डॉक्टर की सलाह पर इसे गिरा सकती हैं लेकिन अगर आप घर पर ही दवाओं या अबॉर्शन करने के घरेलू उपायों से यह करने के बारें में सोच रही है तो होशियार रहें।
भारतीय कानून के अनुसार जानबूझ कर गर्भपात कराना या गर्भ को नुकसान पहुंचाना सजा के दायरे में आता है। साथ ही अगर स्त्री पर कोई अन्य शख्स इसके लिए दबाव बनाए तो वह भी कानून जुर्म है।
मेडिकल अबॉर्शन यानि दवाइयों के माध्यम से गर्भपात कराने के बाद दोबारा गर्भधारण करने में ज्यादा समस्या नहीं होती हैं। इसे बेहद सुरक्षित माना जाता है। परंतु सर्जिक्ल अबॉर्शन के बाद गर्भधारण में कई बार समस्या आती है इसलिए कोशिश करें कि आप गर्भपात का फैसला जल्द से जल्द लें और उस पर अमल करें।
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भारत में गर्भपात को लेकर नैतिकता और अनैतिकता के बीच सवाल उठते हैं। जहां एक तरफ शादी से पहले हुए सेक्स संबंधों से हुए बच्चे को गिराना सभी अनैतिक मानते हैं तो वहीं शादी के बाद भी इसे अनैतिक ही समझा जाता है। लेकिन यहां यह विचारणीय है कि स्त्री का शरीर उसकी खुद की संपत्ति है जिसके फैसले लेने का हक उसे खुद है।
अगर स्त्री को लगता है कि आने वाले शिशु को किसी कारण समस्या हो सकती है या उसकी खुद की सेहत को कोई खतरा हो तो वहां गर्भपात के फैसले को शायद अनैतिक ना समझा जाएं। हालांकि यह विषय हमेशा ही विवादों में ही रहेगा क्योंकि नैतिक-अनैतिक की परिभाषा परिस्थितियों के अनुसार ही बदलती रहती है।
आज बाजार में ऐसे कई विकल्प मौजूद हैं जो अनचाहे गर्भ को रोकने में सहायक हैं। आप कंडोम, गर्भ निरोधक गोलियों, इमरजेंसी कोंट्रासेप्टिव पिल्स आदि किसी भी माध्यम का प्रयोग कर अनचाहे गर्भ से मुक्त रह सकती हैं। विवाह के बाद बेहतर फैमली प्लानिंग से भी इससे बचा जा सकता है और अगर किसी सूरत में आपको गर्भपात कराना भी पड़े तो डॉक्टर की सलाह पर ही करें।
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